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(२३) महत्त्वरूप कमलने विषे (हिमति के) हिमनी पेठे श्राचरण करे . वली ( उदयांबुदे के०) धन, धान्य, प्रताप वृफिरूप जे मेघ तेने विषे ( चंमानिलति के०) प्रचम वायुनी पेठे श्राचरण करे . वली ( दयारामे के०) दयारूप श्राराम जे वन तेने विषे ( हिरदति के ) हस्तीनी पेठे श्राचरण करे बे. अथवा दमारामे एवो पाठ होय तो इंजि. यदमनरूप वन तेने विषे इस्ती समान श्राचरण करे . वली (देमदमावृति के०) कल्याणरूप पर्वतने विषे ( वज्रति के०) वजनी पेठे श्राचरण करे . वली (कुमत्यग्नौ के० ) कुमतिरूप जे अग्नि तेने विषे ( समिति के०) काष्ठनी पेठे श्राचरण करे . तथा (थनीतिलतासु के) श्रन्यायवहिने विषे ( कंदति के०) कंदनी पेठे श्राचरण करे . माटें ए अनीतिनो मूलरूप एवो जे निर्गुणसंगम तेने श्रेयने श्छा करनार पुरुषं न श्राश्रय करवो. श्रांहिं गिरिशुक अने पुष्पशुकनी कथानो दृष्टांत जाणवो ॥६७ ॥ ए गुणीसंगप्रक्रम थयो. ॥१४॥
टीकाः-निर्गुणसंगमदोषमाह ॥ हिमतीति ॥ स निर्गुणसंगमः किमपि श्रेयः कल्याणं अनिलष