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(२७) किंजूतोलोनः? कीर्तिरेव लता वही तस्याः कलापः समूहस्तस्य विनाशे कलजो हस्तिशावः। ईदृशोलोलोजीर्यतां ॥५॥
नाषाकाव्यः-वृत्त उपरप्रमाणे ॥ पूरन प्रताप रवि रोकवेको धाराधर, सुकृत समुफ शोषवेकों कुंजनंद है ॥ कोप दव पावक जननको अरनि दारू, मोह विष नूरुहको महा दृढकंद है ॥ परम विवेक निसिमनि ग्रसि वेकों राहु, कीरति लता कलाप दलन गयंद है। कलहको केलि नौन श्रापदा नदीको सिंधु, ऐसो लोज याहिको विपाक मुख दंद है ॥५०॥
फरीने पण लोजना दोषो कहे . वसंततिलकाटत्तम् ॥ निःशेषधर्मवनदादविजूंनमाणे, फुःखौघनस्मनि विसर्पदकीतिधूमे।बाढंधनेंधनसमागमदीप्यमाने, लोनानले शलनतां बनते गुणोघः ॥५॥
अर्थः-( लोजानले के० ) लोनरूप अग्निने विषे (गुणौघः के०) ज्ञानादिक गुणोनो समूह, ( शलजतां के) पतंगपणाने ( लज़ते के० ) प्राप्त थाय . अर्थात् अग्निमां जेम पतंग पडीने बले , तेम