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(१६) थाज्ञानुनबंधन थाय ,अनेजो दान नथी श्रापतो, तो कीर्ति जाय ॥ यतः॥ ज गिल गल उयरं, जश्न गिलई गलतिन यणा॥अहि विसमा कजा गइ, अहिणा बढुंदरी गहिया ॥१॥अथवा रुडुकरतां मुजने श्यो दोष . एवं विचारी कुमर वली पण पूर्वनी पेठे दातार थको दान देवा लाग्यो, ते वात राजायें सांजली तेवारें कोपायमान थश्ने कुमरने देशवटो दीधो. पनी कुमर पण महामाननो धरनार, साहसिकनो शिरदार ते थोमाएक असवारोने साथें लश् हाथमां दथीयार लश्ने तत्काल परदेशे चाल्यो, केम के तेजी ताजणो खमे नही. पड़ी ते समाचार लोकोना मुखथी जाणीने सऊन पण पालथी नीकलीने कुमरने जश् मल्यो. मार्गमां बेहु जण चाल्या जाय , तेवारें सजनप्रत्ये कुमर पूबवा लाग्यो के हेसजान! कांश्चमत्कारिक वात तो कहो. तेवार सऊन बोल्यो के हे कुमरजी! तमें कहो के पुण्य अने पाप ए बे मांहे कोण रुडं ले ? के जेनी प्रशंसा करीये. तेवारें ललितांगकुमर हसीने कहेवा लाग्यो के अरे गूंडा मूर्खा ! एटयूँ तो सहु कोश जाणेज डे, के जिहां धर्म तिहां जय, अने पाप ति