SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२३३) कः कमिव ? ननखान् वायुः पयोवाद मिव । पुनर्मानः प्राणस्पृशां प्राणिनां विनयं अच्युठानादिकं प्रध्वंसं दयं नयति । कः किमिव ? अहिः सप्र्पोजीवितमिव यथा सर्पो जीवितं क्षयं नयति । पुनरंजसा वेगेन कीर्ति यशःप्रोन्मूलयति।कःकामिव? मतंगजो हस्ती कैरविणीं कमलिनी यथा प्रोन्मूलयति ॥५॥ नाषाकाव्यः- कडखा छंद ॥ मान सवि उचित श्राचार नंजनकरै, पवन संचार जिम घन विहंमै ॥ मान थादरत नय विनय लोपै सकल, जुजग विष जीर जिम मरन मंडै ॥ मानके उदित जगमांहि विनसै सुजस, कुपित मातंग जिम कुमुद खडै ॥ मानकी रीति विपरीत करति जिम. अधमकी प्रीति नर नीति बँडै ॥५१॥ वली पण मानना दोषो कहे . वसंततिलकात्तम्॥ मुंष्णाति यःकृतसमस्तसमी हितार्थ, संजीवनं विनयजीवितमंगन्नाजाम् ॥ जात्यादिमानविषजं विषमं विकारम, तं माईवामृतरसेन नयस्व शांतिम् ॥५२॥इति मानप्रक्रमः॥११॥
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy