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( १७५) हो वारिधितें थल होइ, शस्त्रतें कमल होश ग्राम हो वनतें ॥ कांतार नगर हो। पर्वततें घर होश, वासवतें दास होश हेतू उरजनतें ॥ सिंहतें कुरंग होश व्याल स्याल अंग होश, विषतें पियूष होश माला अहि फनतें ॥ विषमतें समहोश संकट न व्यापै कोश, एते गुन होश सत्यवादी दरसनतें ॥३॥ ___ कथाः-शुक्तिमनी नगरी अनिचंड नामा राजा तेनो वसु नामें पुत्र बे, ते न्हानपणथी सत्यवचननो बोलनार , ते नगरीमा दीरकदंबक उपाध्याय सर्व शास्त्रनो जाण बे, तेनो पुत्र पर्वतक नामें बे, ते स्वनावें कुटिलाशयवालो ने,(एक पर्वतक बीजो वसुराजा अने एकत्रीजो नारद ए त्रणे दीरकदंबक उपाध्याय पासें जणे बे) अन्यदा ते त्रणे शिष्य अगासीमां सूता ने उपाध्याय अगासीमां बेगे जागे एवामां आकाशमार्गे बे चारण मुनियो वातो करता चाल्या जाय , तेमांश्री एक मुनि बोल्यो के श्रा त्रणमां बे तो नरकगामी बे, अने एक वर्गगामी . ए वाणी सांजली उपाध्याय उवेग पाम्या. पड़ी कोण स्वर्गगामी अने कोण नरकगामी जे ? तेनी परीक्षा करवा माटें जूदा जूदा