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( १७६) लोटना त्रण कुर्कुट बनावीने त्रणे शिष्यने दीधा, अने कडं के जिहां को देखे नहिं, तिहां एने हणी आवजो. तेमां वसुराजा अने पर्वतक ए बे जण तो जंगलमा जश् को एकांत जग्यायें कुकडानो विनाश करीने श्राव्या, अने नारदें तो घणां स्थानक जोयां पण क्यां हि कोई न देखे एवं स्थानक दीतुं नहिं. तेवारें कुकडाने पागे आण्यो. उपाध्यायें पूब्यु के केम पालो लाग्यो ? तेवारें नारद बोल्यो के देव, दानव, निगोद अथवा ज्ञानी जिहां तिहां देखी रह्या तेमज महारो आत्मा पण देखतो हतो, माटें शी रीतें तमारी श्राकानो नंग करी एनो विनाश करूं ! ते सांजली उपाध्यायें चिं. तव्यु के ए स्वर्गगामी जे अने पहेला बे नरकगामी जे. अनुक्रमें उपाध्याय आयुष्य पूर्ण करी देवलोके गया. पनी तेने पाटे पर्वतक बेठो अने वसुने राज्य मदयु, नारद पोताने घेर गयो. ___ एकदा एक आहेडीयें वनमां जश् कोश् मृगनी उपर बाण नाख्यो, आगल जश् जोयुं तो मृगने स्थानकें स्फाटिकनी शिला दिठी, तेणें राजाने श्रावी कयु के तरत राजायें ते शिला बानी मगावी,