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________________ (१४७) हो. अर्थात् पोताना देहने कष्ट श्रापीने पण जीवदयापालवी ए जीवदया केहवी बे ? तो के ( सु. कृतस्य के०) सुकृत जे तेनी (क्रीडाः के०) कीडान स्थानक बे. तथा वली केवी ? तो के (पुः कृत के० ) पाप तेज ( रजः के ) रज जे धूड, तेना ( संहार के०) हरण करवामां ( वात्या के०) वायुना विटोलीया समान छे. अर्थात् कर्मरजने उमाडवामां जीवदया विटोलीया जेवी बे. पापने धुंडनी उपमा केम थापी ? तो के ते पापज कर्ममलनुं कारण . वली केवी ? तो के (नवोदन्वन के०) संसाररूप जे समुन तेमां ( नौः के० ) नावसमान डे अर्थात् संसारसमुफ तरवामां नावसमान , वली केहवी डे ? तो के ( व्यसनाग्नि के ) कष्टरूप जे अग्नि तेने विषे ( मेघपटली के०) मेघघटातुल्य अर्थात् अग्निने बुझाववामां जेम मेघ , तेम उःखानि बुझाववामां जीवदया बे, माटे मेघसरखी कही. वली केहवी ने ? तोके (श्रियां के०) संपनियोनी ( संकेतदूती के० ) संकेतस्थानमां पोहोंचाडनारी दूतीसमान ले. वली केहवी ने ? तो के ( त्रिदिवौकसः के०) स्वर्गरूप जे
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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