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(१४०) र्मोदतं पुरुष आलोकति पश्यति । किं विशिष्टं संघं ? गुणराशि केलिसदनं गुणसमूहस्य क्रीडागृहं । एवं ज्ञात्वा संघः सेव्य शेषं पूर्ववत् ॥२३॥
नाषाकाव्यः-वृत्त उपर प्रमाणे ॥ताकों श्राश् मि. लै सुख संपति, कीरति रदै तिहूं जग बाई ॥ जिनसौं प्रीति बढे ताके घट, दिन दिन धरम बुद्धि - धि काई ॥ बिन बिन ताहि लखै शिव सुंदरि, सुरग संपदा मिलै सुनाई ॥ वानारसि गुनरासि संघकी, जो नर जगति करै मन लाइ ॥ २३॥ ___ कथाः-अयोध्या नगरीयें जरतचक्रवर्ती श्रन्याय वर्जतो राज्य पाले बे. एकदा श्रीआदिनाथने केवलझान उपने थके चोराशी गणधर सहित विहार करता अयोध्याना उद्यानमां समोसस्या, उद्यानपालके वधामणी दीधी, तेने साडीबार कोडनुं दान दीधुं. पठी जरतराजायें विचाखु जे श्राज षनदेव पधास्या , तेने सपरिकर जोजन कराएं! एम चिंतवी घणां गाडा पक्कान्नादिकें नरी समोसरणे
आवी लगवानने वांदीने विनति करी के महाराज! आज सर्व कुटुंब सहित श्राप महारं लोजन करो. तेवारें नगवान् बोल्या के हे जरत ! साधुने