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________________ (१२ए) मित्त कहं शत्रु बखानै ॥ पुहपमाल कहं नाग, र. तन पर सम तुझे ॥ चंड किरन श्रातप सरूप, श्ह नांति जु जुबै ॥ करुना निधान अमलान गुन, प्रगट बनारसि जैन मत ॥ पर मत समान जो मन धरत, सो अजान मूरख आपत ॥ १७ ॥ धर्म जागरयत्यघं विघटयत्युबापयत्युत्पथम्, नित्ते मत्सरमुबिनत्ति कुनयं मथ्नाति मिथ्यामतिम् ॥ वैराग्यं वितनोति पुष्यति कृपां मुष्णाति तृष्णां च य, त्तनं मतमर्चति प्रथयति ध्यायत्यधीते कृती २०॥ अर्थ-:(कृती के ) पंमित पुरुष ( यत् के० ) जे ( जैनमतं के ) जैनेजमत जे जिनशासन, एटले जिनप्रवचन तेने (अर्चति के०) पूजे बे, ( प्रथयति के०) विस्तारे बे. वली (ध्यायति के०) ध्यान करे बे. एटले चितवन करे . वली (अधीते के०) पठन करे . ( तत् केन्) तो ते पूर्वोक्तरीतें करेढुं एवं जिनशासन शुं करे ले ? तो के (धर्म के०) धर्मने (जागरयति के ) जागरण ने उद्दीपन तेने करे . वली ( श्रघं के०) पापजे तेने ( विघटय
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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