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________________ गुरु प्रदक्षिणा कुलकम् [२१ कमें मल त्याग कर मोक्ष नाम का सर्वोत्तम स्थान प्राप्त करने वाले है ॥ १६ ॥ पायरियनमुक्कारो, जीवं मोएइ भव सहस्सायो। भावेण किरमाणो, होइ पुणो बोहि लाभाए ॥१७॥ आचार्य भगवन्तों को किया हुआ यह नमस्कार जीव को हजारों भवभवान्तर के जन्मों से मुक्ति दिलाता है । कारण कि भावों से युक्त सद्गुरु को किया गया नमन समकित भाव की प्राति करता है ॥ १७ ॥ पायरिय नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो। मंगलाणं च सव्वेसि, तइयं हवइ मंगलं ॥१८॥ भावाचार्यों को भावपूर्वक किया हुआ नमस्कार सर्व पापों से मुक्त कराता है तथा उसके कारण उत्कर्ष करा कर मंगल भावनाओं की वृद्धि कराता है । सर्व मंगल में तीसरा मंगल है नवकार मन्त्र का तृतीय पद यह महा मंगलकारी है ॥ १८॥ ॥ इति श्रीगुरुप्रदक्षिणा कुलकस्य सरलार्थः समाप्तः ।।
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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