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________________ २०] गुरु प्रदक्षिणा कुलकम् अहो ते निक्खिया माया, अहो लोहो वसीकियो ॥१४॥ अहो ! आपने क्रोध को जीत लिया, मान को पराजित किया, माया को दूर किया तथा अहो ! आपने लोभ को सर्वथा वश में कर लिया ॥ १४ ॥ अहो ते अजवं साहु, ___ अहो ते साहु महवं । अहो ते उत्तमा खंती, अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥१५॥ अहो ! आपकी सौम्यता धन्य है । आपकी विनम्रता अति धन्य है। आपकी क्षमा उससे भी धन्य है तथा आपकी संतोषवृत्ति तो अति उत्तम है ॥ १५ ॥ इहंसि उत्तमो भंते, ___ इच्छा होहिसि उत्तमो। लोगुत्तमुत्तमं सिद्धि, सिद्धिं गच्छसि नीरो ॥१६॥ हे भगवंत ! आप इस भव में प्रगट हुए अति उत्तम है। जन्मजन्मान्तर में भी उत्तम होंगे। तथा अन्त में भी
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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