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________________ २२.] अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम् - अथ संविग्न साधुयोग्यं नियम कुलकम् भुवणिक्क पईवसमें, वीरं नियगुरुपए श्र नमिऊणं विरइ अरदिक्खियाणं, . जुग्गे नियमे पवक्खामि ॥१॥ Pतीनों भुवनों के लिये असाधारण प्रदीप के समान उज्ज्वल श्री वीर प्रभु को और मेरे गुरु के चरण कमलों में नमस्कार करके दीर्घ पर्याय वाले तथा - नवदीक्षित साधुओं के निर्वाह योग्य नियम मैं (सोमसुन्दरसरि ) वर्णित कर रहा निउभरपूरणफला, - श्राजीवित्र मित्त होइ पव्वजा। धूलि हडीरायत्तण-सरिसा, - सव्वेसिं हसणिजा ॥२॥ योग्य नियमों के पालन रहित प्रव्रज्या (दीक्षा) स्वयं के उदरपूर्ति स्वरूप आजीविका के समान है, अतः नियम रहित
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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