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________________ शासनप्रभावक परमपूज्य आचार्यवर्य श्रीमद्विजयधर्मसूरीश्वरजी म. सा. की आज्ञानुवर्तिनी (१) पू· सा० श्री कुमुदप्रभाश्रीजी म० । (२) पू० सा० श्री कल्पलताश्रीजी म० । (३) पू० सा० श्री जयपूर्णाश्रीजी म० । (४) पू० सा० श्री कल्पपूर्णाश्रीजी म० । (५) पू० सा० श्री सौम्यरसाश्रीजी म० । (६) पू० सा० श्री प्रियज्ञाश्रीजी म० । (७) पु० सा० श्री हितज्ञा श्रीजी म० । (८) पू० सा० श्री कल्परत्नाश्रीजी म० । (६) पू० सा० श्री कल्पधर्माश्रीजी म० । शासनप्रभावक परमपूज्य आचार्यवर्य श्रीमद विजयहिमाचलसूरीश्वरजी म. सा० की आज्ञानुवर्तिनी - (१) पू० सा० श्री दर्शन श्रीजी म० । (२) पू० सा० श्री त्रिस्तुति वाले जी म० । (१) पू० सा० श्री प्रेमलताश्रीजी म० । (२) पू० सा० श्री पूर्णकिरणाश्रीजी म० । इस तरह चातुर्मास में साधु-साधवीओं की कुल संख्या ४४ की थी । ......
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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