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खामणा कुलकम्
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॥ अथ खामणा कुलकम् ॥
जो कोइ मए जीवो, चउगइ संसारभवकडिल्लंमि । दूहविश्रो मोहे, तमहं खामितिविहेगां
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चारों गतिओं में मैंने परिभ्रमण रूप भवाटवि में भटकते हुए मोहवश किसी जीव को दुःखी किया हो तो त्रिविध त्रिविध ( मन-वचन-काया से ) खमाता हूँ ॥ १ ॥
नरएसु य उववन्नो, सत्तसु पुढवीसु नारगो होउं । जो कोइ मए जीवो, दूहविश्र तं पिखामेमि
॥२॥
सात नरक पृथ्विओं में मैं जब जब नारकी के रूप में उत्पन्न हुआ वहां मैंने जिस किसी जीव को दुःख दिया हो उसे भी त्रिविध खमाता हूँ ॥ २ ॥