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________________ १४८ ] दश श्रावक कुलकम् सावत्थी नयरीए, नदंणिपिय नाम सडठो जायो। अस्सिणि नामा भजा, पाणंदसमो य रिद्धिए ॥११॥ श्रावस्ती नगरी में श्री महावीर प्रभु का नन्दिनी प्रिय नाम का श्रावक था, जिसके अश्विनी नाम की स्त्री थी और समृद्धि में आनन्द श्रावक के समान था ॥ ११ ॥ इक्कारस पडिमधरा, सव्वे वि वीरपयकमल मत्ता । सब्वे वि सम्मदिट्ठी, बारस वय धारया सवे ॥१२॥ ये सब श्रावक ग्यारह प्रतिमा धारण करने वाले प्रभु श्री महावीरस्वामी के चरण कमल सेवी, सम्यग्दृष्टि और बारह व्रतधारी बने थे। नोट-'उवासगदसाओ' सूत्र में भगवान के दसवे श्रावक का नाम 'सालिही पिया' आया हुआ है। ॥ इति श्री दशश्रावक कुलकस्य हिन्दी सरलार्थः समाप्तः ॥
SR No.022127
Book TitleKulak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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