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दश श्रावक कुलकम् [१४७ चउवीस कणयकोडी,
गोउल ठेव रायगिहनयरे । सयगो भजा तेरस,
रेखई अड सेस कोडीश्रो ॥॥ राजगृही नगरी में शतक नाम का श्रावक श्री महावीर प्रभु का भक्त था, उसके चौवीस कोटि स्वर्ण मुद्राएँ, आठ गोकुल तथा रेवती नाम की पत्नी थी। अन्य बारह पत्नियां थी, रेवती आठ कोटि स्वर्ण मुद्राएँ लेकर तथा शेष एक एक कोटि स्वर्ण मुद्राएँ लेकर दहेज में आई थी ॥६॥ सावत्थी वत्थव्वो, ___लंतग पिय सावगो य जो पवरो। फग्गुणिनामकलत्तो,
जायो पाणंदसमविहवो ॥१०॥ श्रावस्ती नगरी में लान्तक प्रिय श्रेष्ठी रहता था, उसके फल्गुनी नाम की पत्नी थी वह वैभव में आनन्द श्रावक के समान था तथा प्रभु महावीर का परम श्रावक था ॥ १० ॥