________________
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [षष्ठोऽधिकारः, अष्टौ मदस्थानानि तथा श्रुतज्ञान तो सभी मदोंको दूर करनेवाला है । श्रुतज्ञानको पाकर मद करने लगना कहाँतक उचित है ? विषको दूर करनेके लिए दी गई ओषधि विषको बढ़ाती नहीं है।
___ स्थूलभद्र महर्षिको विशिष्ट श्रुताभ्याससे विक्रिया ऋद्धि प्राप्त हुई और उसके गर्वमें आकर उन्होंने दर्शनार्थ आई हुई आर्थिकाओंको भयभीतकर श्रुत-सम्प्रदायका विच्छेद किया। ' अतः कौन व्यक्ति होगा जो इस घटनाको सुनकर श्रुतका मद करे ?
एतेषु मदस्थानेषु निश्चये न च गुणोऽस्ति कश्चिदपि । केवलमुन्मादः स्वहृदयस्य संसारवृद्धिश्च ॥ ९७॥
१. पाटलीपुत्रमें एकत्र हुए 'महावीर-संघ' की प्रार्थनापर जिनतुल्य भद्रबाहुस्वामी पूर्वश्रुतकी २६ वाचना देनेके लिए तैयार हो गये, परंतु वे इस शर्तपर तैयार हुए कि कायोत्सर्ग पूर्ण करनेके पश्चात्, भोजनके समयमें, और मकानसे बाहर आने-जाने के समय में ही वाचना दे सकेंगे । निदान ५०० साधु-विद्यार्थी एवं १००० उनके परिचारक साधु भद्रबाहुके निकट दृष्टिवादके अध्ययन निमित्त पहुँचे । परन्तु बाचनासमयके अनुकूल न होनेसे अन्य साधु तो भद्रबाहुके निकटते चल दिये। उनमें से केवल स्थूलभद्र ही रह गये और उन्होंने संलग्नतापूर्वक अध्ययन करते हुए सांगोपाङ्ग दशपूर्व सीख लिए।
एक दिन स्थूलभद्र एकान्तमें ग्यारहवें पूर्वका अध्ययन कर रहे थे। इसी अवसरपर उनकी सात बहिनें भद्रबाहुस्वामी के दर्शनार्थ आई। उन्होंने वहाँ स्थूलभद्र को न देखकर उनके निवास स्थल के सम्बन्धमें प्रश्न किया। भद्रबाहुने उन्हें उनका ठिकाना बतला दिया।
साध्वियाँ स्थूलभद्र के दर्शनार्थ पहुँची; परन्तु उन्होंने अपनी श्रत-शक्तिका परिचय करानेकी दृष्टिसे सिंहका रूप धारण कर लिया। साध्वियों डर गई और भद्रबाहुस्वामी के निकट जाकर कहने लगीं-क्षमा-श्रमण ! वहाँ स्थूलभद्र नहीं है, बल्कि एक सिंह है । भद्रबाहुने बताया कि स्थूलभद्र ही सिंहका रूप बनाये है। साध्वियाँ पुनः स्थूलभद्रका दर्शनकर कृतार्थ हुई।
इसके बाद स्थूलभद्र भद्रबाहुके पास वाचना लेने पहुँचे । भद्रबाहुको नंदके मंत्री शकटारका पुत्र, उच्च कुलोत्पन्न, संयमी, स्थूलभद्र द्वारा इस प्रकार श्रुतज्ञानका दुरुपयोग देखकर बड़ा खेद और आश्चर्य हआ। वाचना देनेके निवेदनपर भद्रबाह स्थूलभद्रसे कहने लगे--" हे अनगार । जो तुमने पढा है. वही बहत हैं, अब तुम्हें पढ़नेकी कोई जरूरत नहीं।"
स्थूलभद्रने और गच्छीय साधुओंने वाचना देनेके लिए बहुत अनुनय-विनय की, पर भद्रबाहु कहने लगे-"श्रमणो; दिन-दिन समय नाजुक आता जा रहा है, मनुष्यों की मानसिक शक्तियोंका प्रतिक्षण -हास होता जा रहा है, उनकी समता और गंभीरता :नष्ट होती जा रही है। इस अवस्थामें शेष पूर्वोका प्रचार करने में मैं कुशल नहीं देखता।"
स्थूलभद्र अग्रिम वाचनाके लिए अत्याग्रह करने लगे । अतः भद्रबाहुने शेष चार पूर्वोको बतलाना तो स्वीकार कर लिया, परन्तु स्थूलभद्रको उन पूर्वोको दूसरों को पढ़ानेकी आज्ञा नहीं दी ।
इस प्रकार स्थूलभद्रके श्रुताभिमानके कारण उनके साथ ही चार पूर्वोका नाश हुआ। देखो वीर-निर्वाण सम्बत् और जैनकालगणना पृ. सं. ९४--९८ ।