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________________ कारिका ८१-८२-८३ ] प्रशमरतिप्रकरणम् भावार्थ-यह जीव नारकी होकर तिर्यञ्चयोनि अथवा मनुष्ययोनिमें जन्म लेता है । पुनः एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जातिमें उत्पन्न होता है। उसमें भी एकेन्द्रियों में पृथिवीकायके शर्करा, वालुका वगैरह बहुतसे भेद हैं । इसी प्रकार जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकी भी जितनी योनियाँ हैं, उतनी ही लाख जातियाँ हैं । देवगतिमें भी ऐसा ही जानना चाहिए । इसी लिए संसारको चौरासी लाख योनियोंवाला कहा गया है । उस संसारमें उत्पन्न हुआ जीव जघन्य, मध्यम और उत्तम कुलोंमें जन्म लेता है। संसारकी इस विडम्बनाको जानकर कौन विद्वान् जातिका मद कर सकता है? एतदेव स्फुटतरमाचष्टेइसी बातको और भी स्पष्टतासे कहते हैं : नैकान् जातिविशेषानिन्द्रियनिर्वृत्तिपूर्वकान् सत्त्वाः । कर्मवशाद् गच्छन्त्यत्र कस्य का शाश्वता जातिः॥८२॥ टीका-जातिविशेषाननेकसंख्यान्, इन्द्रियनिर्वृत्तिपूर्वकान् इन्द्रियनिर्वृत्तिः पूर्व कारणं येषां जातिविशेषाणाम् । एकस्मिन्निन्द्रिये स्पर्शनाख्ये निवृत्ते एकेन्द्रियजातिः । स्पर्शनरसनतो द्वीन्द्रियजातिः । स्पर्शनरसनघ्राणनिवृत्तौ त्रीन्द्रियजातिः । स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुनिवृतौ च चतुरिन्द्रियजातिः । स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रनिवृत्ती पञ्चेन्द्रियजातिः। स्वकर्मवशाद् गच्छन्ति, अत्र कस्य का शाश्वता जातिः ? तस्मान्न युक्तो जातिमदः ॥ ८२॥ अर्थ-कर्मके वशसे प्राणी इन्द्रियोंकी रचनासे होनेवाली अनेक जातियोंमें जन्म लेता है । यहाँ किसकी कौन जाति स्थायी है ? । भावार्थ-जाति-भेदका कारण इन्द्रियोंकी रचना है । एक स्पर्शन इन्द्रियके होनेपर एकेयि जाति है । स्पर्शन और रसनाके होनेपर दोइन्द्रिय जाति होती है । स्पर्शन, रसना और प्राणके होनेपर तेइन्द्रिय जाति होती है । स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षुके होनेपर चौइन्द्रिय जाति है। स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु और श्रोत्रके होनेपर पञ्चेन्द्रिय जाति होती है । इन जातियोंमें जीव अपने अपने कर्मके अनुसार जन्म लेता है । यहाँ किसीकी कोई जाति हमेशा नहीं रहती । अतः जातिका मद करना ठीक नहीं है। कुलमदव्युदासार्थमाहअब कुलके मदको दूर करनेके लिए उपदेश देते हैं: रूपबलश्रुतिमतिशीलविभवपरिवर्जितांस्तथा दृष्टा । विपुलकुलोत्पन्नानपि ननु कुलमानः परित्याज्यः ॥ ८३॥ प्र०८
SR No.022105
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1951
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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