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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[प्रथमोऽधिकारः अहमस्य स्वामी' इति चित्तपरिणामो ममत्वम् । इष्टवस्तुप्राप्तौ परितोषोऽभिनन्दः । अभिलषणमभिलाषः-इष्टप्राप्त्यर्थ मनोरथः । एवमेभिः पर्यायशब्दैर्योऽर्थोऽभिधीयते स रागः ॥१८॥
अर्थ-इच्छा, मूर्छा, काम, स्नेह, गार्थ्य, ममत्व, अभिनन्द, अभिलाष इत्यादि अनेक रागके पर्यायवाची नाम हैं।
भावार्थ--सुन्दर स्त्री आदिमें जो प्रीति होती है, उसे इच्छा कहते हैं । बाह्य वस्तुओंके साथ एकमेक होने रूप जो परिणाम होता है, उसे मूर्छा कहते हैं । इष्ट वस्तुकी अभिलाषाको काम कहते हैं। विशिष्ट प्रेम वगैरहको स्नेह कहते हैं । अप्राप्त वस्तुको इच्छा करनेको गार्य कहते हैं। यह वस्तु मेरी है, इसका मैं स्वामी हूँ, ऐसे मनके भावको ममत्व कहते हैं । इष्ट वस्तुके मिलनेपर जो सन्तोष होता है, उसे अभिनन्द कहते हैं । इष्ट वस्तुकी प्राप्तिके लिए जो मनोरथ है, उसे अभिलाषा कहते हैं । ये सब. शब्द रागके ही पर्यायान्तर हैं।
'दोषक्षयो वैराग्यम्' इत्युक्तम् । तत्र पर्यायकथनेन दोष निरूपयतिदोष-क्षयको वैराग्य कहा है। अतः दोषके पर्याय नाम कहते हैं :
ईर्ष्या रोषो दोषो द्वेषः परिवादमत्सरासूयाः ।
वैरप्रचण्डनाद्या नैके द्वेषस्य पर्यायाः ॥ १९ ॥ टीका-'परविभवादिदर्शनाच्चित्तपरिणामो जायते वियुज्यतामेष एतेन विभवेन, ममैवास्तु विभवोऽन्यस्य मा भूत् । इति ईर्ष्या । तथा सौभाग्यरूप-लोकप्रियत्वादिविषयरोषः क्रोधः । दूषयतीति दोषः। अप्रीतिलक्षणो द्वेषः परदोषोत्कीर्तनं परिवादः । मां छोदयति छद्मयति सद्धर्मात् इति मत्सरः । असूया तु अक्षमा। परस्परवधादिजनितकोपसमुत्थं वैरम् । प्रकृष्टं चण्डनं प्रचण्डनं प्रकोपः शान्तस्यापि कोपाग्नेः संधुक्षणम् । एवमाद्या वहवोऽन्येऽपि द्वेषपर्यायाः॥ १९॥
अर्थ-ईर्ष्या, रोष, दोष, द्वेष, परिवाद, मत्सर, असूया, वैर और प्रचण्डन इत्यादि अनेक द्वेषके पर्याय नाम हैं।
भावार्थ-दूसरेकी सम्पत्ति वगैरहको देखकर मनमें ऐसा भाव होता है कि इसकी यह सम्पत्ति नष्ट हो जावे, मेरे पास ही सम्पत्ति रहे, अन्य किसीके भी पास सम्पत्ति न रहे, इस भावको ईर्ष्या कहते हैं। दूसरेका सौभाग्य, रूप, और लोकप्रियता आदिको देखकर जो क्रोध उत्पन्न होता है, उसे रोष कहते हैं । जो दूषित करे वह दोष है । प्रीतिके न होनेको द्वेष कहते हैं । दूसरेके दोषोंको कहना परिवाद है। जो अपनेको सच्चे धर्मसे अलग करे, वह मत्सर है । दूसरोंके गुणोंको न सह सकना असूया है। आपसमें मार-पीट होनेसे उत्पन्न हुए क्रोधसे जो भाव पैदा होता है, वह वैर है । अत्यन्त तीव्र गुस्सेको अर्थात् शान्त हुई कोपानिको भी भड़काना प्रचण्डन है । इत्यादि अन्य भी अनेक द्वेषके नामान्तर हैं।
१ विषयबाध्यो रोषः मु०। २ सारयति प०। ३ सधर्मात् प० ।