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________________ कारिका २९९-३०० ३०१-३०२ ] प्रशमरतिप्रकरणम् २०७ बड़ो भारी प्रीति होती है । सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और आस्रव निरोधरूप संवरसे वह युक्त होता है, एवं बारह प्रकारके तपोंके आचरणमें उसे बड़ा-भारी उत्साह रहता है। पूर्वोक्तभावनाभि वितान्तरात्मा विधूतसंसारः। सेत्स्यति ततःपरं वा स्वर्गान्तरितस्त्रिभवभावात् ॥ ३०१ ॥ टीका-पूर्वोक्ता द्वादश भावना या अनित्यादिकाः । एताभिर्भावितो वासितोऽन्तरात्मा ज्ञानदर्शनोपयोगस्वभावो विधूतस्त्यक्तो विक्षिप्तः संसारो येन नरकादिगतिभेदः स विधूतसंसारः । उत्तीर्णप्रायः संसारसागरात् स्वल्पशेषभव इत्यर्थः । सेत्स्यति सिद्धिं प्राप्स्यति । एवंविधक्रियानुष्ठातायां, ततःपरं प्रकर्षतः स्वर्गान्तरितस्त्रिभवभावात् सम्प्रति मनुष्य उक्तान्तरक्रियानुष्ठायी, ततो देवस्तस्मात् प्रच्युतः पुनमनुष्यः संसेत्स्यतीति । त्रीन् भवाननुमूय त्रीणि जन्मानि लब्ध्वेत्यर्थः ॥ ३०१॥ __ अर्थ-पहले कही गई बारह भावनाओंसे उसकी अन्तरात्मा सुवासित होता है और वह संसारका नाश करनेवाला होता है तथा उसके बाद मध्यमें स्वर्गमें जन्म लेकर तीसरे भवमें मुक्तिको प्राप्त करता है। भावार्थ-उसकी आत्मा पहले कही हुई बारह भावनाओंके रसमें डूबी रहती है तथा पहले मनुष्य जन्ममें जो बारह भावनाओंका चिन्तन किया था, उसका संस्कार भी बरावर बना रहता है। ऐसे साधुको संसार-समुद्रसे पार हुआ ही समझना चाहिए । क्योंकि उसके भव बहुत ही कम शेष रह जाते हैं । केवल तीन ही भव धारण करके वह मुक्त होता है । अर्थात् वर्तमानका एक मनुष्य-भव तो वह भोग ही रहा है, उसके बाद देव होता है और वहाँसे च्युत होकर पुनः मनुष्य-भव धारण करके मोक्ष चला जाता है। एवं यतेश्चर्यामभिधाय गृहाश्रमिणं प्रत्याहइस प्रकार मुनि-चर्याको बतलाकर गुहस्थकी चर्या बतलाते हैं: यश्चेह जिनवरमते गृहाश्रमी निश्चितः सुविदितार्थः । दर्शनशीलवतभावनाभिरभिरञ्जितमनस्कः ॥ ३०२ ॥ टीका-इह मनुष्यलोके यो गृहाश्रमी जन्म लब्ध्वा गृहस्थ एव तीर्थकरवचन सुविदितार्थः सम्यकश्रितः सत्यं भगवद्भिरुक्तम् । एतदेव संसारादुत्तारकं प्रवचनम् । दर्शनं -पूर्वोक्तद्वा-ब०।२एवं विधक्रियानुष्ठा-फ० ३-पदमिदं नास्ति-फ.-ब० पुस्तकयोः।-४ जन्म-ब० ५-दुत्तारक प्र-फ०।
SR No.022105
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1951
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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