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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [ द्वाविंशाधिकारः, अन्तफलाभिधानम् वीर्यकी कभीके कारण, चित्तकी स्थिरता न होनेसे, तथा कर्मोंका निकाचितबन्ध होनेके कारण सकल कर्मोका क्षय किये विना ही वह मर जाता है, वह साधु सौधर्मस्वर्गमें, बारह कल्पोंमें, नवग्रेवयक तथा पाँच अनुत्तरविमानोंमें से किसी एकमें जन्म लेता है और इस प्रकार वह वैमानिकदेवोमें ही उत्पन्न होता है तथा वह बड़ी भारी ऋद्धि, कान्ति और समचतुरस्रसंस्थानसे युक्त उत्तम वेष शरीरका धारक होता है । सारांश यह है कि जिन साधुओंको मुक्ति प्राप्तिके समस्त साधन सुलभ रहते हैं, वे मोक्ष प्राप्त करते हैं, किन्तु जिन्हें इस कारण-सामग्रीकी प्राप्ति नहीं होती वे मरकर प्रभावशाली महर्द्धिक देव होते हैं ॥ २९६, २९७, २९८ ।।
तत्र सुरलोकसौख्यं चिरमनुभूय स्थितिक्षयात्तस्मात् ।
पुनरपि मनुष्यलोके गुणवत्सु मनुष्यसंघेषु ॥ २९९ ॥
टीका-तत्रेति सौधर्मादौ सुरलोके सौख्यमनुमूय चिरं स्थितिभेदादुपर्युपरीति । ततः स्थितिक्षयादायुषः। तस्मात् सुरलोकान्मनुष्यलोकमागत्य गुणवत्सु मनुष्येषु विशिष्टान्वयेषु जातिकुलाचारसम्पन्नेषु संघेप्विति बहुपुरुषकेषु ॥ २२९ ॥
जन्म समवाप्य कुलबन्धुविभवरूपबलबुद्धिसम्पन्नः ।
श्रद्धासम्यक्त्वज्ञानसंवरतपोबलसमग्रः ॥ ३०० ॥
टीका-समवाप्य जन्मलाभं जन्म । बन्धुः स्वजनलोकः । कुलं पितुरन्वयः । विभवो द्रव्यसम्पत् । रूपं विशिष्टशरीरावयवसन्निवेशः । बलं वर्यिसम्पत् । बुद्धिरौत्पत्तिक्यादिः । एभिबन्धुकुलादिभिः सम्पन्नः सम्बन्धः । श्रद्धा भगवदहत्सु प्रीतिरतिशयवती, दक्षिणीयेषु च यतिषु श्रद्धा परितोषः । सम्यक्त्वं तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षणम् । ज्ञानं मत्यादिज्ञानं यथासंभवम् । संवर आस्रवनिरोधलक्षणस्तपोबलं तपसि द्वादशविधे उत्साहोऽनुष्ठानं च । एभिः समग्रः सम्पूर्णः संयुक्तो वेति ॥ ३०० ॥
अर्थ-वहाँ बहुत कालतक सुरलोकके मुखको भोगकर, आयुका क्षय होनेपर वहाँसे फिर भी मनुष्यलोकमें आकर गुणवान् मनुष्य परिवारमें जन्म होता है । और कुल, बन्धु, सम्पत्ति, रूप, बल, और बुद्धिसे युक्त होता है तथा श्रद्धा, सम्यक्त्व, ज्ञान, संवर और तपोबलसे पूर्ण होता है।
भावार्थ-वह साधु वैमानिकदेवोमें जन्म लेकर बहुत कालतक देवलोकक सुखोंको भोगता है । जब आयु पूरी हो जाती है तो वहाँसे च्युत होकर फिर भी मनुष्य-लोकमें आता है और जाति कुल और आचारसे युक्त उच्च मनुष्य परिवारमें जन्म लेता है । वहाँ भी उसे अच्छा कुल मिलता है, खूब बन्धु-बान्धव मिलते हैं, धन, सौन्दर्य, शक्ति, और बुद्धि प्राप्त होती है । भगवान् अर्हन्तदेवमें उसकी
१-पदमिदं व. पुस्तके नास्ति । २-पदमिदं ब. पुस्तके नास्ति । ३-सम्पूर्ण से-च.। .....