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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [चतुर्दशोऽधिकारः, षड्दव्याणि अर्थ-दो आदि प्रदेशीसे लेकर अनन्तप्रदेशी तक स्कन्ध होते हैं । परमाणुके प्रदेश नहीं होते । रूप वगैरह गुणोंकी अपेक्षासे परमाणुका विभाग कर लेना चाहिए।
भावार्थ-दो आदि प्रदेशवाले पुद्गलोंको स्कन्ध कहते हैं । स्कन्ध नाम संघातका है । अनेक परमाणुओंके संघात अर्थात् सम्बन्ध विशेषको स्कन्ध कहते हैं । जिस प्रकार दो परमाणुओंके मेलसे द्वयणुक नामका स्कन्ध और तीन परमाणुओंके मेलसे त्रयणुक नामका स्कन्ध होता है, इसी तरह अनन्त परमाणुओंके मेलसे अनन्तप्रदेशी स्कन्ध होता है । अतः परमाणुके सिवाय शेष जितने पदलद्रव्य हैं, जिनमें एकसे अधिक परमाणु पाये जाते हैं, वे सब स्कन्ध कहलाते हैं। केवल परमाणु स्कन्ध। नहीं कहा जाता; क्योंकि वह अप्रदेशी है । अखण्ड एक द्रव्य होनसे उसके अन्य प्रदेश नहीं होते। वह स्वयं एकप्रदेश है । पुद्गलके सबसे छोटे अवयवको प्रदेश कहते हैं । परमाणुसे सूक्ष्म कोई दूसरा पुद्गल नहीं होता । अतः परमाणु बहुप्रदेशी न होने के कारण अप्रदेशी है । पर अप्रदेशी परमाणुमें भी रूप, रस, गन्ध और स्पर्श गुण पाये जाते हैं । इसलिए गुणोंकी अपेक्षासे भी परमाणु सप्रदेशी ही है केवल द्रव्यरूप अवयवोंके न होने के कारण भी वह अप्रदेशी है । शास्त्रमें कहा है:
'वह परमाणु कारण है; क्योंकि उसीसे समस्त स्कन्ध उत्पन्न होते हैं । वह अन्त्य और सूक्ष्म है; क्योंकि उससे भी छोटा द्रव्य नहीं होता । वह नित्य है; क्योंकि उसका कभी नाश नहीं होता तया उसमें एक रस. एक गन्ध, एक रूप और दो स्पर्श (स्निग्ध रूपमें से कोई एक और शीत-उष्णमेंसे कोई एक ) होते हैं तथा उसके कार्योंसे ही उसे जाना जाता है; क्योंकि सूक्ष्म होनेके कारण वह स्वयं दिखलाई नहीं देता।
कस्मिन् पुनर्भावे औदयिकादौ धर्मादीन्यजीवद्रव्याणि वर्तन्त इत्याहऔदयिक आदि भावोंमें धर्म आदि अजीव द्रव्योंके कौनसा भाव होता है, यह बतलाते हैं:--
भावे धर्माधर्माम्बरकालाः परिणामिके ज्ञेयाः।
उदयपरिणामिरूपं तु सर्वभावानुगा जीवाः ॥२०९ ॥
टीका-अनादिपारिणामिकभावे धर्माधर्माकाशकालद्रव्याणि चत्वारि वर्तन्ते जीव भन्यत्वादिवत् । यथा चानादिः संसारस्तथा धर्मादिद्रव्यपरिणामोऽपीति । न जातुचिद्धर्मादिद्रव्यरहित असील्लोकः । पुद्गलद्रव्यं पुनरौदयिके भावे भवति पारिणामिके च। परमाणुः परमाणुरिति अनादिपारिणामिको भावः । आदिमत्पारिणामिकस्तु व्यणुकादिरभेन्द्रधनुरादिश्च । वर्णरसादिपारिणामिकस्तु परमाणूनां स्कन्धानां चौदयिको भावः व्यणुकादिसंहतिपरिणामश्चेति ॥२०९॥
अर्थ-धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्यके पारिणामिकभाव जानना चाहिए । पुद्गल. द्रव्यके औदयिक और पारिणामिकभाव होते हैं । तथा जीवोंके तो सभी भाव होते हैं ।
भावार्थ-जिस प्रकार जीवके भव्यत्व वगैरह भाव पारिणामिक होते हैं, उसी प्रकार धर्म, अधर्म, आकाश और कालद्रव्योंके भी पारिणामिकभाव ही होता है; क्योंकि जैसे संसार अनादि है,