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________________ १४४ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [एकादशोऽधिकारः, जीवादिनवतत्त्वानि उस घटरूपसे उत्पत्ति होती है । इसे ही घटका उत्पाद कहते हैं । घट उत्पन्न होनेके बाद वह मिट्टीका पिण्ड फिर दिखलाई नहीं पड़ता वह नष्ट हो जाता है। यही विनाश है। जैनधर्ममें उत्पाद और विनाश तराजूके दो पलड़ोंकी उचाई-निचाईकी तरह सहभावी हैं । जिस प्रकार तराजूका यदि एक पलड़ा नीचा होता है, तो दूसरा पलड़ा अवश्य ही ऊँचा होता है, इसी प्रकार जिस समय मिट्टीके पिण्डका विनाश होता है, उसी समय घटका उत्पाद होता है और जिस समय घटका उत्पाद होता है, उसी समय मृत्पिण्डका विनाश होता है । जैनदर्शनमें न तो विनाश तुच्छाभावरूप है और न वस्तुकी किसी पहली पर्याय का विनाश हुए विना दूसरी पर्यायकी उत्पत्ति होती है । साम्प्रतकाले चानागते च यो यस्य भवति सम्बन्धी। तेनाविगमस्तस्येति स नित्यस्तेन भावेन ॥ २०६ ॥ टीका–वर्तमकालेऽनागते भविष्यति च काले । च शब्दादतीतकाले । यः पदार्थो मृदादिस्वरूपं न जहाति; वर्तमानघटपर्यायसम्बन्धी मृन्मृदिति त्रिकालविषयः पिण्डघटकपालावस्थासु न नष्टो न विगतः, स तेन भावेन मृदादिना ध्रुवो भवति नित्यः । एवं यदस्ति तत्सर्वमुत्पादव्ययध्रौव्यरूपम् । नच ध्रौव्यमन्तरेणोत्पादविनाशयोर्निर्जीवयोः संभवः । कचिदुः त्पद्यते च वस्तु ध्रौव्यनाशवदेव । विनश्यदपि ध्रौव्योत्पादापेक्षम् । ध्रुवमुत्पादविनाशापेक्षम विनाशापेक्षमविनाश ( विना) भावित्वात् परस्परमुत्पादादीनामिति ॥ २०६॥ अर्थ-वस्तुका जो खरूप वर्तमान, अतीत और अनागत कालमें रहता है, उस स्वरूपसे उस वस्तुका नष्ट न होना-यही उस स्वरूपसे नित्यता है। भावार्थ-मिट्टी अतीत पिण्ड अवस्थाओंमें है, वर्तमान घट अवस्थामें है और आगामी कपाल अवस्थामें बराबर वर्तमान रहती है । तीनों ही अवस्थाओंमें मिट्टीका नाश नहीं होता। केवल उसकी आकृतियाँ बदल जाती हैं । अतः मिट्टी मिट्टीरूपसे नित्य है। __इस प्रकार समस्त वस्तुएँ उत्पाद, व्यय और प्रौव्यरूप हैं । न कोई सर्वथा ध्रुव ही हैं और न कोई सर्वथा उत्पाद-व्यय रूप ही है । घौव्यके विना उत्पाद, व्यय नहीं हो सकते, जैसे कि मिट्टीके विना न पिण्ड अवस्थाका नाश हो सकता है और न घटकी उत्पत्ति हो सकती है । यदि कोई वस्तु उत्पन्न होती है तो नौव्य और विनाशकी अपेक्षासे ही उत्पन्न होती है, जिस प्रकार घटका उत्पाद मिट्टीकी ध्रुवता और पिण्डके विनाशके विना संभव नहीं है । यदि कोई वस्तु नष्ट होती है तो घौव्य और उत्पादकी अपेक्षासे ही नष्ट होती है, जैसे पिण्डका नाश मिट्टीकी ध्रुवता और घटके उत्पादकी अपेक्षा रखता है। जो उत्पादविनाशशील है, वही ध्रुव है । सर्वथा ध्रुव कोई वस्तु नहीं है । अत: ये तीनों ही परस्परमें अविनाभावी हैं । १-अतीतकालादयः परा-फब०। २-पंचास्तिकाय और पंचाध्यायीमें उत्पाद-विनाशका विस्तृत स्वरूप देखें।
SR No.022105
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1951
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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