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________________ कारिका १८४-१८५-१८६-१८७] प्रशमरतिप्रकरणम् १२९ अर्थ-शास्त्रके पढ़नेमें, पढ़ानेमें, आत्मचिन्तनमें और धर्मोपदेशमें सदा मन, वचन, और कायसे यत्न करना चाहिए। भावार्थ-नये-नये शास्त्रोंका स्वाध्याय करना चाहिए । पहले पढ़े हुए शास्त्रोंका विचार करना चाहिए और विचार करके दूसरोंको पढ़ाना चाहिए । तथा प्रतिदिन यह सोचना चाहिए कि 'आज मैंने शास्त्रविहित कर्म किये हैं या नहीं ? ' इसके सिवाय दश प्रकारके पूर्वोक्त कथन करनेमें भी मनको लगाना चाहिए। ये सभी कार्य विशुद्ध ध्यानमें गर्मित हैं। शास्त्रशब्द व्युत्पत्त्यर्थमाहशास्त्र-शब्दकी व्युत्पत्ति करते हैं: शास्विति वाग्विधिविद्भिर्धातुः पापठ्यतेऽनुशिष्टयर्थः। त्रङिति च पालनार्थे विनिश्चितः सर्वशब्दविदाम् ॥ १८६ ॥ टीका-शासु अनुशिष्टाविति । वाग्विधिविदश्चतुर्दशपूर्वधराः । पापठ्यत इति अनुशासनेऽत्यर्थं पठ्यत इत्यर्थः । अनेकार्था धातव इत्यन्यस्मिन्नप्यर्थे वृत्तिरस्तीति तदर्शयतिअनुशिष्टयर्थ इति । त्रै पालने । विनिश्चितो विशेषेण नियतः । सर्वशब्दविदां प्राकृतसंस्कृतशब्दप्राभृतज्ञानां विनिश्चित इत्यर्थः ॥ १८६॥ ____ अर्थ-चौदह पूर्वक धारी ' शास्' धातुको 'अनुशासन ' अर्थमें पढ़ते हैं । और ' त्रैङ्' धातुको सभी शब्दवेत्ता ‘पालन' अर्थमें निश्चित करते हैं । भावार्थ-शास्त्र शब्द दो धातुओंसे बना है। उनमेंसे 'शास्' धातुका अर्थ 'अनुशासन' है और ' त्रैङ्' धातुका अर्थ 'पालन ' है । उक्त धातुओंका यह अर्थ हमारा रचा नहीं है, किन्तु चौदह के धारी और संस्कृत प्राकृत आदि शब्दोंके ज्ञाता इन अर्थोको न केवल मानते हैं; किन्तु ये अर्थ उन्हीके बतलाये हुए और निश्चय किये हुए हैं । यस्माद्रागद्वेषोद्धतचित्तान् समनुशास्ति सद्धर्मे । संत्रायते च दुःखाच्छास्त्रमिति निरुच्यते सद्भिः ॥ १८७॥ टीका-शास्त्रनिर्वचनद्वारेण शब्दं संस्कारयति । रागद्वेषाभ्यामुद्धतमुलवणं चित्तं येषां तत्र रागद्वेषोद्धतचित्तान् सम्यगनुशास्ति । सद्धर्मे क्षमादिदशलक्षणे सद्धर्मविषयमनुशासनं करोति । संत्रायते च दुःखात् शारीरामानसाच्चति परिरक्षति यस्मात्तस्माच्छास्त्रमभिधीयते। सद्भिर्यथान्यायवादिभिर्निश्चयेनोच्यते निरुच्यत इत्यर्थः ॥ १८७ ॥ १-कारयति, ब०। प्र०१७
SR No.022105
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajkumar Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1951
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size25 MB
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