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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् [दशमोऽधिकारः, धर्मकथा अर्थ-यतः राग और द्वेषसेजिनके चित्त व्याप्त हैं, उनको समीचीन धर्ममें अनुशासित करता है और दुःखसे बचाता है, इसलिए सज्जन उसे शास्त्र कहते हैं ।
भावार्थ-ऊपर 'शास्' धातुका अर्थ अनुशासन और 'त्रैङ् ! धातुका अर्थ रक्षण बतलाया है । इन्हीं दोनों धातुओंसे शास्त्र शब्द बना है । अतः जो रागी और द्वेषी मनुष्योंको उत्तम क्षमादिरूप दशलक्षणधर्मकी शिक्षा देता है, और नरकादि गतियों के शारीरिक और मानसिक दुःखोंसे उन्हें बचाता है, उसे शास्त्र कहते हैं । न्यायकै अनुसार बोलनेवालोंने शास्त्रका यही अर्थ निश्चित किया है।
शासनसामर्थेन तु संत्राणबलेन चानवद्येन ।
युक्तं यत्तच्छास्त्रं तचैतत्सर्वविद्वचनम् ॥ १८८ ॥ टीका-शासनसामर्थ्येनानुशासनसममिदं द्वादशाङ्गं प्रवचनमतस्तेन शासनसामर्थ्येन संसारस्वभावमनुवदता तद्विपरीतं च मोक्षमार्ग दर्शयता निरावाचं परिरक्षता च शरणागतान प्राणिनोऽनवद्योपायेन, कश्चित् परिरक्षत्यन्यानुपनन्न तथेदं शासनं कस्यचिदुपघातकं युक्तमिदं प्रतिबद्धम् । यतः शास्त्रमुक्तेनार्थद्वयेन तच्चैतच्छास्त्रं सर्वविदः सर्वज्ञस्य वचनमन्वर्थद्वारेण क्षीणाशेषरागद्वेषमोहस्य नान्यस्येति ॥ १८८ ॥
___ अर्थ-जो निर्दोष शासनशक्ति और रक्षणके बलसे युक्त होता है, उसे शास्त्र कहते हैं। ऐसा शास्त्र सर्वज्ञका वचन ही हो सकता है।
___ भावार्थ-द्वादशाङ्गरूप प्रवचन लोकका अनुशासन करनेमें समर्थ है; तथा संसारका स्वभाव बतलाकर और उससे विपरीत मोक्षके मार्गको दर्शाकर शरणमें आये हुए प्राणियोंकी निर्दोष उपायसे रक्षा करनेमें समर्थ है । जिस प्रकार राजा दूसरोंका वध करके किसी एककी रक्षा करता है, उसी प्रकार यह शास्त्र किसीका घातक नहीं है । अतः शास्त्र उक्त दोनों बातोंसे युक्त होता है, अत: वह वीतराग, वीतद्वेष और वीतमोह भगवान् सर्वज्ञदेवका वचन ही हो सकता है। क्योंकि उन्हींके वचनोंमें जगत्को निर्दोष शिक्षण देनेकी और निर्दोष रीतिसे उससे रक्षण करनेकी अनुपम सामर्थ्य है।
तदेव सर्वज्ञवचनमुद्देशतो दर्शयन्नाहअब उन्हीं सर्वज्ञदेवके वचनोंको बतलाते हैं :
जीवाजीवाः पुण्यं पापाखवसंवराः सनिर्जरणाः। बन्धा मोक्षश्चैते सम्यक् चिन्त्या नवपदार्थाः ॥१८९॥