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श्राद्धविधि प्रकरण
३२५ संपदा अरण्यमें पैदा हुये मालतीके पुष्प समान किस लिए निष्फल कर डाली। मनोहर अलंकार और वस्त्रादि पहरने लायक एवं कमलसे भी अति कोमल कहाँ यह शरीर और कहां वह अत्यन्त कठिन वृक्षकी छाल। देखने वाले को मृगपाशके समान यह केश पाश, अत्यन्त सुकोमल है यह इस कठिन और परस्पर उलझी हुई जटाबन्ध के योग्य नहीं लगता। यह तेरी सुन्दर तारुण्यता और पवित्र लावण्यता, सांसारिक सुख भोगनेके योग्य होने पर भी तू इसे क्यों बरबाद कर रहा है ? आज तुझे देखकर हमें बड़ी करुणा उत्पन्न . होती है। क्या तू वैराग्यसे तापस बना है या कपटकी चतुराई से ? कर्मके प्रतापसे तापस बना है, या दुष्ट कर्मके योगसे १ इन कारणोंमें से तू कौनसे कारणसे तापस बना है ? या किसी बड़े तपस्वीने तुझे शाप दिया है ? यदि ऐसा न हो तो ऐसी कोमल अवस्थामें तू ऐसा दुष्कर व्रत किस लिये पालता है ?
तोतेके पूर्वोक्त बचन सुनकर तापसकुमार का हृदय भर आया अतः वह अपने नेत्रोंसे अविरल अश्र. धारा बरसाता हुआ गद् गद् कण्ठसे बोला कि हे शुकराज ! और हे कुमारेन्द्र ! आप दोनोंके समान इस जगतमें अन्य कौन हो सकता है कि जिसे मेरे जैसे कृपापात्र पर इस प्रकारकी दया आवे। अपने दुःखसे और अपने सगे सम्बन्धियों के दुःखसे इस जगतमें कौन दुःखित नहीं ? परन्तु दूसरोंके दुःखसे दुःखित हो ऐसे मनुष्य दुनियां में कितने होंगे ? पर दुःखसे दुःखित जगतमें कोई विरला ही मिलता है; इसलिये कहा
शुराशक्ति सहस्त्रणः प्रतिपदं विद्याविदोऽनेकशः। सन्ति श्रीपतयोप्यपास्त धनदस्तेऽपि क्षितौ भूरिशः॥ कित्वाकये निरीक्ष्य चाण्य मनुजं दुःखादितं यन्मनः स्ताद्र प्यं प्रतिपद्यते जगति ते सत्पुरुषः पंचशः॥
___इस जगतमें शूरवीर हजारों ही है, विद्वान् पुरुष भी पद पदमें अनेक मिलते हैं, श्रीमन्त लोग बहुत हैं धन परसे मूर्छा उतार कर दान देनेवाले बहुत मिलते हैं, परन्तु दूसरेका दुख सुन कर या देख कर जिसका मन उस दुखी पुरुषके समान दुःखादित होता हो ऐसे पुरुष इस जगतमें पांच छह हैं।
____ अबलाओं, अनाथों, दीनों, दुखिआओं और अन्य किसी दुष्ठ पुरुषोंके प्रपंचमें फंसे हुए मनुष्योंका रक्षण सत्पुरुषोंके बिना अन्य कौन कर सकता है ? इसलिए है कुमारेन्द्र ! जैसी घटना बनी है मैं वैसी ही यथावस्थित आपके समक्ष कह देता हूं; क्योंकि निष्कपटी और विश्वासपात्र आपसे मुझे क्या छिपाने योग्य है ? इसी समय अकस्मात् जैसे कोई मदोन्मत्त हाथी जड़ मूलसे उखाड़ फेंका हो वैसे ही बनमें से अनेक वृक्षोंको समूल उखाड़ फेंकनेवाला महा उत्पातके बायुके समान दुःसह्य, जगत्रयको भी उछलती हुई धूलके समुदाय से एकाकार करता हुआ, विस्तृत होता हुआ, सघन धूम्रके समान प्रचंड वायु चलने लगा। तोता और कुमार की आंखोंको धूलसे मंत्र मुद्रा देकर सिद्धचोर बायु तापसकुमार को उड़ा लेगया। हा! हे विश्वाधार! हे सुन्दर आकार, हे विश्वचित्तके विश्राम, हे पराक्रमके धाम, हे जगज्जन रक्षामें दक्ष, इस दुष्ट राक्षससे मेरा रक्षण कीजिये! .
इस प्रकारका न सुनने लायक प्रलाप सिर्फ कुमार और तोतेको ही सुन पड़ा। यह सुनते ही अरे! मेरे जीवन प्राणको तू मेरे देखते हुये कहां कैसे ले जायगा ? ऊचे शब्दोंमें यों बोलता हुवा, क्रोधायमान हो