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________________ अधिकार ] साम्यसर्वस्व ___“शान्तरस भावनासे भरपूर प्रध्यात्म ज्ञानके कल्पवृक्ष (अध्यात्मकल्पद्रुम) ग्रन्थकी श्रीमुनिसुन्दरसूरिने अपने और परायेके हितके लिये रचना की है इसका ब्रह्म ( ज्ञान और क्रिया) प्राप्त करनेकी इच्छासे अध्ययन करें।” गीति. विवेचन-इस ग्रन्थका कर्ता कौन है यह पहिले ही बतला दिया गया है । श्रीसोमसुन्दरसूरिके शिष्य मुनिसुन्दरसूरि महाराज इस प्रन्थके कर्ता हैं । उनका जो कुछ चरित्र नभ्य हुआ है वह इस ग्रन्थके प्रारम्भमें दिया गया है । वे सहस्रावधानी होकर असाधारण बुद्धिबल रखते थे। जनसमूहपर अनेक उपकार करने में अहर्निश तत्पर रह कर वे शांतरसकी वर्षा बरसाते थे। ___ इस ग्रन्थका नाम जो अध्यात्मकल्पद्रुम रक्खा गया है, यह नाम कितने अंशतक सार्थक है यह हम उपोद्घातमें पढ़ चुके हैं और ग्रन्थका अध्ययन करनेसे यह विषय स्फुट हो गया । इस श्लोकमें कर्ता तथा ग्रन्थका नाम बतलाया गया है। इस ग्रन्थका क्या विषय है यह भी यहां बतलाया गया है। यह ग्रन्थ शान्तरसकी भावनावाला है । यह रस हृदयको कितना निर्मल करता है और इसको क्यों रसकी व्याख्यामें रखना चाहिये, इतना ही नहीं अपितु इसको क्यों ' रसाधिराज' कहा गया है इसके लिये हम भूमिकामें निरूपण किया हुआ विवेचन पढ़ चुके हैं। ___ प्रन्थ रंचनेका क्या प्रयोजन है यह भी यहां स्पष्ट होता है। ब्रह्म अर्थात् ज्ञान और क्रिया अथवा परमात्मस्वरूपसे प्रगट हुआ शुद्ध आत्मस्वरूप मोक्षके अभिलाषी प्राणीयोंको उसके प्राप्त करने के लिये अभ्यास करना चाहिये । इस प्रयोजनको बतलाते हुए यह भी बताया गया है कि इसके अधिकारी कौन हैं ।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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