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________________ अधिकार ] यतिशिक्षा [५४९ रोककर रख, और शीलांगरूप मित्रों के साथ उसे निरन्तर जोड़।" वंशस्थ, विवेचन-"मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोचयो।" इस सूत्रका रहस्य हम चित्तदमन अधिकारमें देख चुके हैं । कर्मबन्धपर सुखदुःखका आधार है और बन्धनका कारण मन है; इसलिये सुखदुःखकी प्राप्ति करना मनके आधीन है। यह एक घटना हुई । इसका यह कारण है कि मन जिसके संसर्गमें आता है वह उसीके सदृश हो जाता है। शास्त्रकार इस को तैलसे उपमा देते हैं । तैल थोड़ा होने पर भी जैसे पानीमें डालने पर सर्वत्र फैल जाता है इसीप्रकार संसारसमुद्र के जलमें यदि मनको स्वतंत्र छोड़ दिया जाय तो यह भी दोड़ादोड़ लगाता है। अपितु तैल के साथ जैसे पुष्प रखे जाते हैं उसकी वैसी ही सुगंधी आने लगती है, बढ़ीया इत्तर भी तैलके मिलनेसे ही बरता है, और तैलमें मोगरा, चंबली आदिके मिलानेसे वैसी ही सुगन्धि प्रोहित होती है; इसलिये यदि मनको उत्तम वस्तुओं के साथ जोड़नेका प्रयत्न करेगा तो वह भी उत्तम होगा वरना इसका विपरीत ही फल मिलेगा। तादात्म्य होनेके लिये जलका दृष्टान्त मनन करने योग्य है । जिसप्रकार पानीमें रंग डाला हो तो वह एकरूप हो जाता है, इसीप्रकार संसारके किसी भी कार्यके साथ यदि मनरूप जलको मिलाया हो तो मन उसके समान हो जाता है। इसीप्रकार शीलांगके साथ यदि मनको मिलाया हो तो वह तद्रूप हो जाता है। इसप्रकार मनकी सम्बन्धक वस्तु के साथ तादात्म्यरूप प्राप्ति होनेकी और ध्यान खेंचकर कहते हैं कि हे यति ! वस्तुस्वरूप इसप्रकार है अतएव तेरे मनको प्रमादकी संगति न होने दे, अन्यथा यह प्रमादी हो जायगा । इसको लो शीलांगके साथ
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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