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अधिकार ] वैराग्योपदेशाधिकारः [३७९ प्रकार इस संसारमें लालचके प्रसंगोंसे अत्यंत सचेत रहना उचित हैं । लालचको लात लगाना सिखनेकी अत्यन्त भावश्यकता है। ऐसे प्रसंगोंमें मनोविकारके वशीभूत होकर धर्मधन खोदिया जायगा तो दूसरे विद्याधरके. समान दुःखी होना पड़ेगा। सत्त्ववंत प्राणी प्रथम विद्याधरके समान अपना दृष्टिबिन्दु हजारों जालोंके बीच में होनेपर भी नहीं चूकते हैं, और जो प्राणी इसप्रकार व्यवहार करते हैं वे अल्पकालमें ही उसके उत्तम फलको प्राप्त करते हैं ।
११ निर्भागीका दृष्टान्त. अनेक देवताओंकी सेवा करनेपर एक जीवको चिन्तामणि रत्न प्राप्त हुआ। चिंतामणिरत्नका ऐसा प्रभाव है कि वह जिसके पास हो यदि वह उसकी आराधना करे तो उसको इच्छित वस्तुकी प्राप्ति हो सकती है। एक बार वह पुरुष समुद्रमार्गसे अपने देशको जाता था । एक रात्रिको चन्द्रकी काँतिके साथ चिन्तामणिरत्नकी कॉतिकी समानता की उसको उछालने लगा इतनेमें हाथ हीला, रत्न गिरा, समुद्र में डूब गया और वह जैसा पहले था वैसा ही फिर से दरिद्री हो गया।
उपनयः- मनुष्यभव चिन्तामणिरत्नके सदृश है । अत्यन्त प्रयाससे मिलने योग्य जैनधर्मरूप चिन्तामणिरत्नको प्राप्तकर प्रमादके वशीभूत हो उसको खो दिया जावे तो भविष्यमें अत्यन्त पश्चात्ताप करना पड़ता है, अतएव रत्नके प्राप्त होनेपर उसके सच्चे मूल्यको जानकर उसको सुरक्षित रखना चाहिये।
शास्त्रकार स्वपर उपकारकी बुद्धिसे ऐसे अनेकों दृष्टान्त बता गये हैं। इन सबका यह सार• है कि विषयके वशीभूत न होना, मनपर अंकुश रखना, अपना उत्तरदायित्व समझना, मनुष्यभव और देव-गुरु-धर्मकी प्राप्तिकी दुर्लभता, समझना