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अध्यात्मकल्पद्रुम .
[दशा
और लालचके वशीभूत न हो जाना उचित है। साधर तथा निरक्षर सबोंको शिक्षा देनेवाले होनेसे इन दृष्टान्तोंपर उचित विवेचन किया गया है।
प्रत्येक इन्द्रियसे दुखपर दृष्टान्त. पतङ्गभृहैणखगाहिमीन
द्विपद्विपारिप्रमुखाःप्रमादैः। शोच्या यथा स्युर्मृतिबन्ध-दुःखै
चिरायभावी त्वमपीति जन्तो!॥१४॥ "पतंग, भ्रमर, हिरण, पक्षी, सर्प, मच्छी हाथी, सिंह मादि प्रमादसे एक एक इन्द्रियके विषयरूप प्रमादके वश हो जानेसे जिसप्रकार मरण, बंधन आदि दुखोंका कष्ट भोगते है, इसीप्रकार हे जीव ! तू भी इन्द्रियोंके वशीभूत होकर अनन्त काल तक दुख भोगेगा।" उपजाति.
विवेचन:-उपर सामान्यरूपसे प्रमाद त्याग करनेका उपदेश किया गया है, उसमें अनेको दृष्टान्त बताकर कहा गया है कि यदि प्रमाद किया जायगा तो अत्यन्त दुख उठाने पड़ेगे। यहाँ बताया गया है कि एक एक इन्द्रियके वशीभूत होने से भी अत्यन्त कष्ट उठाने पड़ते हैं। बेचारे तिर्यचोंको भी एक एक इन्द्रियके वशीभूत होनेसे वध, बंधनादि सहन करने पड़ते हैं और अन्तमें मृत्यु भी प्राप्त होती हैं, तो फिर तू तो जो पांचों इन्द्रियोंको निरंकुशस्यसे व्यवहार में लाता है विचार कर कि तेरी क्या दशा होगी?
१ पतंग-रात्रिमें सुवर्ण जैसे रंगवाले दीपकको देखकर पतंग उसके मोहसे आकर्षित होकर उसपर जाकर अपने जीवनको होम देता है, जिससे वह शिघ्र ही जलजाता है या