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________________ ३७८ ] अध्यात्मकल्पद्रुम [ दशवाँ ही से बात करते हैं, दूसरोंको छूते भी नहीं हैं। मनुष्यभवका आयुष्य केवल दो पहर जितना हैं उतने समय तक धर्म करनेसे जो फल मिलता है वह बहुत समयतक सुख पहुँचाता है, अतएव यहां इन्द्रियो और मनको वशमें रखकर धर्मधन एकत्र कर लेनेको तैयार रहना चाहिये । १० दो विद्याधरोंका दृष्टान्त. वैतादय पर्वतपर दो विद्याधर रहते थे। उन्होंने अपने पूज्य पुरुषोंकी बहुत सेवा करके उनके पाससे संसारको वशीभूत करनेकी विद्या सिखली। फिर वे विद्याकी साधना करने के लिये पृथ्वीपरके किसी ग्राममें आये और उस विद्याकी आराधनाके कल्पानुसार चंडालकी लड़कीके वेविशालकी प्रार्थना की और दोनों घरदामादके रूपमें उसके यहाँ रहने लगे। उन दोनोंने चान्डाल पुत्रीके साथ विवाह किया और साथ ही रहने लगें; किन्तु भिन्न-भिन्न भागमें रहकर वे विद्या साधने लगे। चाण्डाल कन्या नीच होनेसे हावभाव दिखला कर उनको क्षोभ उत्पन्न करती थी; परन्तु दोनोमेंसें एक विद्याधर तो दृढ़ निश्चयवाला होनेसे किश्चित्मात्र भी न डिगा और छ मासतक निरतिचार ब्रह्मचर्यका पालनकर विद्या सिद्ध करके वैतादय पर्वतपर गया और सर्व लक्ष्मी तथा राज्यसुखका अनुभव करने लगा। दूसरा विद्याधर चाण्डाल कन्यासे क्षोभित हो गया और उससे लिपट पड़ा-ब्रह्मचर्यसे भ्रष्ट हुआ। नीचका स्पर्श करनेसे उसके पास जो विद्या थी उसको भी खो दिया और चाण्डाल बनकर दुःखी हुआ। उपनया-इस विद्याधरको सब सामग्री मिली थी फिर भी इन्द्रियोंके वशीभूत होकर सब खो बैठा, इसी. १ देवताओं के बड़े आयुष्यके प्रमाणमें मनुष्य आयुष्य बहुत अल्प है।
SR No.022086
Book TitleAdhyatma Kalpdrum
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManvijay Gani
PublisherVarddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthmala
Publication Year1938
Total Pages780
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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