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________________ षष्टिशतक प्रकरण विशेषिई माहोमाहि जि जूजूआं मन । तीणइं करी मिथ्यात्वी पराभव करई ॥५१॥ [जि.] जइ किमइ सर्व श्रावकहूई एकमत एकधर्मीपणउं हुंत होयते ता तउ हे सुन्दर ! मिथ्यात्ववादमाहे धर्मार्थी धर्मवंत 5 श्रावकहूई कहण कउण एक पराभव अपमान कुजा करत ? अपि तु श्रावकहूई कोइ पराभव न करत । किं तु सहू कोई मानत ॥५१॥ __ [मे.] जउ किमइ सर्व पक्षना श्रावक मिथ्यात्वी साथि विवादि ऊपनइ हूंतइ एकई मति हुई तउ हे सुंदर ! धर्मार्थी धर्मस्थित तेहनइ, कहउ न, कउण पराभव करत ? अपि तु कोई न करत ॥५१॥ 10 [सो.] जे पुरुष महर्द्धिक धर्मनु आधार हुई तेहनी प्रशंसा करई छई। . [जि.] अथ श्रावकाहे मोटा श्रावकहूई गरूयडि देखालइ । तं जयई पुरिसरयणं सुगुणड्डे हेमगिरिवरमहग्छ । जस्सासयम्मि सेवइ सुविहिरओ सुद्धजिणधम्मं ॥५२॥ 15 [सो.] ते पुरुषरूपिउं रत्न जयवंत वर्तउ। सुगुणडं उत्तमगुणे करि आढ्य पूरिउं । हेमगिरि० सोनानउ पर्वत मेरु तेहनी परि महार्घ ते पुरुष सर्वोत्तम कहिवाइ। जस्सासयम्मि जेहनइ आश्रइ जेहनइ वलि' सांनिध्यइं करी सुविहिरओ सुविधिरत साचा धर्मनउ आराधक सूधउ निष्कलंक जिनधर्म सेवइ आराधइ । जेहनइ २०बलि धर्म चालइ, जे पुरुष धर्मवंतनइं आधार दिइ ते पुरुष गाढ उत्तम कहीइं ॥५२॥ . . १ जि. मे. जयउ. २ सोनानु. ३ महर्म्यं. ४ बलि. ५ गाढ.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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