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त्रण बालावबोध सहित
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[जि.] ते पुरुषरत्न जयवंतु हुउ । किसउ छइ पुरुषरत्न ? मुगुणड़े सु भला परोपकारादिक गुण तेह करी आढ्य समृद्ध भरिउ पूरिउ । वली किसु छइ ? हेमगिरिवर मेरु पर्वत तिह सरीषउ महर्घ्य पूज्य मानीतउ। मोटाई करी मेरुपर्वत सरीषउ। ते पुरुषरत्न कउण ? जस्सासयम्मि जेह पुरुषरत्ननइ आश्रयि आधारि सुविधिरत इ. सन्मार्गसेवणहार सुश्रावक सुद्धजिणधम्मं निर्मलउ जिनधर्म सेवइ ॥५२॥
[मे.] ते पुरुषरत्न जयवंतउ हुउ, जे सोभन भला गुण तिणि करी आढ्य सहित । वली ते पुरुष केवहउ ? मेरुपर्वत तेहनी परि महर्घ्य । जेहनइ आश्रइ सांनिध्य लगी सुविधि भली विधि तेहनइ विषइo तत्पर हूंतउ सूधउ जिनधर्म सेवइ आराधइ ॥ ५२ ॥
[सो.] वली एह जि वात कहइ छइ ।
[जि.] बली संधि पुरुषिहूई मोटाई प्रकासइ । सुरतरुचिंतामणिणो अग्धं न लहंति तस्स पुरिसस्स । जो सुविहिरयजणाणं धम्माधारं सया देइ ॥५३॥ 15
[सो.] कल्पद्रुम चिंतामणि लोकमाहि मनोवांछित देनहार' भणी अति उत्तम कहीइं। पुण तेह पुरुषनउ ते अर्घ मूल न लहइ । ते पुरुष तेहइ पई गाढउ' उत्तम । जो सुविहि० जे पुरुष सुविधिरत खरी विधि खरी सामाचारीना आराधण्हार' लोक रहई धर्माधार सदैव दिइं। कल्पद्रुम चिंतामणि एकइ जि भविं इह२० लोकनु उपकार मात्र करई । आ पुरुष धर्मनु उपकार करतउ .
१ दिन्हार. २ पाहइं. ३ गाढ. ४ आराधन्हार, ५ एक.