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________________ aण बालावबोध सहित आपणा मत मनाविधा भणी शुद्ध धर्मार्थी रहई पीड । आपणउ धर्म करावइ बलात्कारिहं ॥ ५० ॥ ५५ [ जि] उन्मार्गसेवी मिथ्यात्वी समर्थ सबल हूंतउ धर्म ऊपरि अत्तिभाव गाढी वासना ज न करई ता लठ्ठे ते भलउं । अह अथवा मिथ्यात्व धर्म ऊपर आदर करइ ता तर पछइ सुद्धधम्मत्थी 5 निर्मल धर्मकरणहार हूई पीडह दूहवइ ॥ ५० ॥ [ मे. ] जे कुमार्गनउ सेवणहार समर्थइ इंतउ धर्मन विषइ अतिभाव न करइ धर्मना काममाहि मिलद नहीं ता लठ्ठे तउ रूडउं । अथ जउ किमइ करइ तर आपणा मत मनाविवा भणी सुद्ध धर्मार्थीनइं चाडीहनी करी पीडइ । आपणउ धर्म बलात्कारि करावइ - ० ॥ ५० ॥ [ सो.] जह सर्व श्रावकहूई एकपणु हुई तउ धर्मनई ' पराभव करी न सकई । ए बात कहइ छइ । [ जि. ] श्रावकहूई वसिवानउ प्रकार कही साहम्मीमा हे समेला होउं । इसुं कहइ छइ । 6 15 जइ सव्वसावयाणं एगन्तं हुत मिच्छवायम्मि । धम्महियाण सुंदर ता कह णु पराहवं कुज्जा ॥ ५१ ॥ [ सो. ] जइ सव्व० जइ सर्व पक्षना श्रावक रहई मिथ्यात्त्वना वादनt विषइ एकमत हुइ । सविहून मनु एक सरिखड मिथ्यात्व निर्लोठवा अथवा जिनमत स्थापवा ऊपरि हुइ त 20 धम्मट्टियाण० धर्मार्थी लोक रहइ हे सुन्दर ! ता कह० तः मिथ्यात्वी पराभव अपमान किम करत ? न करत | पुणे कालनइ १ रहई. २ धर्म रहनं. ३ जि. कहण.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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