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त्रण बालावबौध्र सहित
[जि.] अथ लोक गड्डरिकापवाहि पड़िउ हूंतड़ कांई न मानइं। इसुं कहइ लइ । जिणआणा वि चयंता गुरुणो भणिऊया जं नमिवति । ता किं कीरइ लोओ छलिओ गड्डरिपवाहेण ॥ ३८॥ .'
[सो.] जिण. जे जिन वीतरागनी आज्ञा छांडई छ । विराधिइ छई, तेहइ गुरु भणी लोक जं नमस्करीइं वांदीई वांदणां दीजइं। ता किं० तउ सिउं थाइ । लोक गड्डरिकाप्रवाहि छलिङ व्यापिउ छइ । जेहि एक गाडरी जाइं तीहि बीजीइ गाडरी जाई । तिम एक लोक करता देखी बीजाइ ति करई ॥ ३८॥
[जि.] जिणआणा वि० जिननी आज्ञा त्यजता मूकता जे हुई तेही गुरुणो भणिऊण गुरु करी जत् जे नमिजंति नमस्करीई वांदणां दीज़इं । ता तउ पछइ गड्डरिकाप्रवाहि करी छलिउ हूंत लोक किं कीरइ । अपि तु लोक कांइ न जाणइं । जिम गाडरपशु गाडर केडइ जाइ, तत्त्वातत्त्वविचार काई न जाणइं, तिम लोकई ॥ ३८॥
[मे.] जिननी आज्ञा छांडता जे छइ तेहनइं जे गुरु करी नमई, तउ लोक बापडउ किसउं करइ । सघलयइ गड्डरीप्रवाहि छलिउ । जिहां एक गाडरु काई देषीनइ जाइ तिहां सघली गाडरी प्रवाहि पडी जाइं तिम लोक तत्त्वार्थ अणजाणतां एकि माहूरा करीनइ जाई । अनइ बीजा प्रवाहि देषावेषिं जाई मानई ॥३८॥
२॥ २८॥
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[सो.] कुगुरु छांडतां लोक दाक्षिण्यं करई । ए वात कहइ छइ ।
[जि.] लोक कुगुरु मेल्हत दाक्षिण्य करइ । अनेरइ स्थानकि दाक्षिण्य न करई । इसुं कहइ ।