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षष्टिशतक प्रकरण
निक्खिण्णो लोओ जइ कुवि मग्गेइ रुहिआखंडं । कुगुरूण संगचयणे दक्खिण्णं ही महामोहो ॥ ३९ ॥
[ सो.] निद्दक्खिण्णो० लोक एहवउ निर्दाक्षिण्य, जइ कोइ रोटीन खंड कटकर मागइ तउ न दिहं । थोडइ काजि दाक्षिण्य न 5. करइ । कुगुरूण० अनइ कुगुरुनउ संग एवडा अनर्थन हेतु ते छांडतां दाक्षिण्य करई । काणि आणइ । ही महामोहो आहा ! ए महामोह, मोटउं अजाणिवउं, गाढउं मूर्खपणउं कही ॥ ३९ ॥
[जि.] लोक निर्दाक्षिण्य गुणरहित छइ । जइ कुवि जह कोई रोटीन कटक मागई, तउ दाक्षिण्य मेल्ही रोटीकुटकई न दिहं । 20 कुगुरु भ्रष्ट गुरुनउ संसर्ग तेहनइ मेल्हिवड़ दाक्षिण्य करइ । ही खेदे । महामोहो मोटउं अजाणिवउं ॥ ३९ ॥
[ मे. ] लोक एहवउ निर्दाक्षिण्य । जइ को रोटीन खंड मागइ तउ हिं नापरं । अनइ कुगुरुना संगनउं त्यजिवउं तिहां दाक्षिण्य करई । कहई, 'हउं आपणा प्रियागत गुरु किम मूंकडं । पणि ही इस खेदि ए सह महामोहनउं विलसित ॥ ३९ ॥
[ सो.] वली कुगुरु आश्री कहइ छइ ।
[ जि. ] अथ मिथ्यात्वीनउं विलसित देखाइ ।
किं भणिमो किं करिमो ताण हयासाण धिट्ठदुट्ठाणं । "जे दंसिऊण लिंगं खिवंति नरयम्मि मुद्धजणं ॥ ४० ॥
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[ सो.] किं भणिमो० सिउं बोलीइ । सिउं कीजइ । तेहहूई हताश अभागिया रहई, घीठ रहइ, दुष्टचित्तहूइ जे दंसिऊण० जे लिंग महात्मानउ वेष आपणपामाहि देखाडीनइ
१ रहई. २ रहईं.
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