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षष्टिशतक प्रकरण.
केतला रहइं धर्मनी मति ऊपजइ । तेहइ केतला तेहे पर्वे उपवास दानादिक करता देखीइं ॥ २६ ॥
[जि.] ते जयवंतु हुइ, जिणि वीतरागि सांवत्सरि चातुर्मासिक सुपर्व मनोहर पर्व विहिया कीधां । जिहां जिनोक्त सांवत्सरिकादिक 5 पर्वना प्रभाव इंतउ निद्वेधसाण सर्वदा पापशक्तई जीवहूरं धम्ममई धर्म करवानी बुद्धि जायइ हुइ ॥ २६ ॥
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[.] ते श्रीजिन जयवंत वर्त्तउ, जीणई ए शोभन भलां पर्व कीधां, संवत्सरी चउमासी प्रमुख, जिहां तपनियमप्रभावनादिक पुण्य कीज | गाढाई निर्बंध अधर्मीनइ पणि जेह पर्वना प्रभावइतउ 10 धर्मनी मति ऊपजइ ॥ २६ ॥
[ सो.] मिथ्यात्वीनां पर्व आश्री बात कहइ छइ ।
[ जि. ] अथ मिथ्यात्व पर्वना करणहारनउं स्वरूप कहइ छइ । नामं पि तस्स असुहं जेण निदिट्ठाई मिच्छपब्वाई । जेसिं अणुसंगाओ धम्मीण वि होइ पावमई ॥ २७ ॥
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[सो. ] नाम पि तस्स० तेहनउं नामइ अशुभ विरूउं, नामइ तेह पापीनरं न लेवउं, लेवा नावई, जीणई ए होली बलेव नवरात्र प्रमुख मिथ्यात्वपर्व कीधां । जेहे पर्वे धूलिनउं ऊडाडिवउं, गालिनउं देवडं जीवहिंसादिकन करिवउं प्रवर्त्त । जेसिं० जेह
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पर्वना अनुषंग योगतउ धर्मवंतइनइ मनि पापनी मति आवइ । तेह 20 गहिलाई करई, मन विरूआं थाइ, वचन' यथातथा बोलइ ॥ २७ ॥
[ जि . ] तेहनउं नामई असुभकारिउं अग्राह्य, जिणई मिच्छपव्वाईं मिथ्यात्वपर्व निदिट्ठाई कह्यां । किसा भणी तेहनउं नाम
१ वचनइ.