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त्रण बालावबोध सहित
नाराधइ, मिथ्यात्व जि करइ ते तेह सरीषउ जाणिवउ । इसिउ भाव ॥२५॥
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[ जि . ] जिणगुण सर्वज्ञगुण तेहरूपिडं रत्ननउं महानिधान तेही कदी मिथ्यात्व कांई न जाइ ? अथ जाणिवउं । निधानि पामिर हूंत कृपणांहूई पुणो वली दारिद्र्य हुइ । तथैवोक्तं
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दानं भोगो नाशस्तिस्रो गतयो भवन्ति वित्तस्य । यो न ददाति न भुङे तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥ तिणि कारणि सम्यक्त्वरूपिउं महानिधान लही मिथ्यात्वी जीवरूपिया कृपणहूइं मिथ्यात्वरूप दारिद्य न जाई ॥ २५ ॥
[मे. ] जिन वीतरागना गुणरूप रत्नभरिउं महानिधान लहीन 10 मिथ्यात्व कांइ न जाई ? जीव मिथ्यात्व कांइं न मूकई ? अथवा लाधइ निधानि कृपणनई वली दालिद्र जि हुइ । कांइ वेची वावरी न सकई ह भणी दालिद्री कही ॥ २५॥
[ सो.] जिनशासननां पर्वइ उत्तम । ए वात कहइ छइ । [ जि.] अथ जिनधर्मपर्व प्ररूप ।
सो जयउ जेण विहिया संवच्छरचाउमासिअसुपव्वा । निधसाण जायइ जेसिं पभावओ धम्ममई ॥ २६ ॥
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[सो.] सो जयउ० ते जिन जयवंत वर्त्तउ, जीण संवच्छरी वरसी चाउम्मासी प्रमुख सुपर्व रूडां पर्व, अमारिप्रवर्त्तन तपनियम ब्रह्मचर्य पोसह प्रभावनादिक केवल पुण्यमय जि सुपर्व रूडां पर्व कीधां | 20 निधसाण० जेह पर्वना प्रभावतउ जे' गाढा निर्द्धवस अधर्मी ह
१ जि.