________________
षष्टिशतक प्रकरण
सांभलिई सम्यक्त्व- मिथ्यात्व, गुरु-अगुरु, धर्ममार्ग - लोकमार्गनउ विहरउ न जाणई, तीणइं सांभलिई सिउं छइ ? कांइ न हुइ ॥ २४ ॥
[जि.] ते जिनकथा प्रमाण, ते जिनोपदेश प्रमाण, ते ज्ञान प्रमाण, जेण जिणि वातरं जिणि उपदेसई, जिणि जाणिव करी जीव 5 सम्यक्त्व अनइ मिथ्यात्व जाणइ, गुरु अनइ अगुरु कुगुरु जाणइ, धर्म जाणइ अनइ लोकस्थिति जाइ ॥ २४ ॥
३०
[ मे. ] ते कथा कही प्रमाण, ते उपदेस सांभलिउ प्रमाण, ते ज्ञान प्रमाण जी जाणिव करी सम्यक्त्व - मिथ्यात्व, गुरु अनइ कुगुरु, धर्ममार्ग - लोकमार्गनी स्थिति जाणइ ॥ २४ ॥
[सो. ] केतल' अभागिआंहूइ जिनमत जाण्याइ पूठिइ मिथ्यात्व न जाइ । ए वात दृष्टांति करी कहइ छ ।
IO
[ जि . ] केई एक अधमहूई सुगुरु कन्हई उपदेस सांभलिइ हूंतइ मिथ्यात्व न जाइ । ए वात दृष्टांति करी कहइ छइ । जिणगुणरयणमहानिहि लहूण वि किं न जाइ मिच्छत्तं । अह पत्ते विनिहाणे किवणाण पुणो वि दारिद्दं ॥ २५ ॥
[ सो.] जिण० वीतरागना जे गुण, परमेश्वरनउ धर्म तेहरूपीउं रत्नभरिउं निधान लही इनइ किसिउं केतला अभागी जीव रहई मिथ्यात्वनउ मननउ परिणाम जातउ न देषीइ ? ते कांई न जाई ? ते अभाग्यजिनउं कारण । तेह ऊपरि दृष्टांत कहइ छइ । अह पत्ते ० 20 अथवा अभागीइं कृपणि निधान लाधउं हुइ, पुण वेची वावरी न सकई, तेह भणी वली दारिद्री जि कही । तिम सम्यक्त्व लहीइनइ धर्म
१ केतलाइ २ हुई. ३ जाइइ. ४ जि. मे. किविणाण. ५ लहीनइ. ६ मनतणउ.