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अण बालावबोध सहित
सद्गुरु समीपि धर्म सोअव्व सांभलिवउ । अह अथवा उचिअं उचित योग्य जिम हुइ तिम सडाओ श्रावकसमीप श्रीजिनधर्म सांभलिवउ । किसु छइ श्रावक । तस्व एसस्स कहगाओ तेह जिननउ सिद्धांत तणउ उपदेस तेहनउ कहणहार जिनमार्गप्ररूपक ॥२२-२३॥
5 [मे.] जिनमतनउ कथाप्रबंध सघलउइ भव्य सघलाइ जीवनइं संवेगकारी वैराग्यहेतु हुइ । अनइ संवेग वैराग्य साचइ सम्यक्त्व थकइ हुइ । तेह भणी सम्यक्त्व सूधी देसनाई जि लाभइ । अनइ ते सुद्धदेसना सुगुरइ जि करइ । तेह भणी जिननी आज्ञा तत्पर सावधान जीवि धर्म सुगुरु पासि सांभलिवउ । अथवा उचित योग्य श्रावका कन्हलि सांभलिवउ । पणि ते श्रावक केबउ । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव सारी सूद्धा उपदेशनउ कथकु हुइ ॥ २२-२३ ॥
[सो.] कहिवउं नइ सांभलिवउं जिम सफल थाइ तिम कहइ
छइ ।
. [जि.] अथ सुगुरु समीपि अथवा शुद्ध श्रावक कन्हई धर्मा सांभलिइ हूंतइ सांभलणहारहूइं जिसउ गुण हुइ । स कहा सो उवएसो तं नाणं जेण जाणए जीवो। . सम्मत्तमिच्छभावं गुरुअगुरु धम्मलोअठिई ॥२४॥ .
[सो.] ते कथा कही प्रमाण, ते उपदेश सांभलिवउ' प्रमाण, ते जाणिउं प्रमाण, जीणइं करी जीव एतला बोल जाणइ । सम्मत्त०२० आ सम्यक्त्व, आ मिथ्यात्व, आ गुरु, आ कुगुरु, आ धर्मनी स्थिति, आ लोकव्यवहारनी स्थिति कहीइ ए विहरउ जाणइ । जीणइं उपदेशइं
१ सांभलिउ.