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________________ त्रण बालावबोध सहित ३३ असुभ ? जेसिं अणुसंगाओ जेहां मिथ्यात्वनां पर्वनां संग लगी धम्मीण वि धर्मवंतईहूई पाप करवानी बुद्धि हुइ ॥ २७ ॥ [मे. ] तेहनउं नामइ अशुभ पाडूउं, जीणइं मिथ्यात्वीनां पर्व होली बलेव नवरात्री प्रमुख उपदेश्यां । जिहां धूलि ऊडाडीइ, हिंसा कीजइ । जे पर्वना अनुषंग योगइतर धर्मवंतइ मनि पापमति 5 ऊपजइ ॥ २७ ॥ [ सो.] संसर्गि करी केतलानइ विहरंड पडइ, केतलानइ न पडइ । ए वात कहइ छइ । [जि. ] अर्थ पर्वसंसर्ग कही उत्कृष्ट धर्मवंतहूई अनइ गाढा पापीहूई सुसंसर्ग कुसंसर्ग कांई न करई । ए वार्ता प्रकट | मज्झठिई पुण एसा अणुसंगेणं हवंति गुणदोसा । उक्किपुण्णपावा अणुसंगेणं न धिप्पंति ॥ २८ ॥ TO [ सो.] मज्झ० मध्यम पुरुषनी स्थिति जं तेह रहई अणु. संगेणं संगतिनइ विशेषिरं गुणइ हुई, दोषइ हुई । गुणवंतनी संगति गुणवंत' थाइ । पापनी संगतिई दोषवंत थाई । ए मध्यम जीवनां विशेष | 15 उक्कि० उत्कृष्ट जे पुण्यना धणी गाढा उत्तम, अनइ उत्कृष्ट पापना धणी गाढा मिथ्यात्वी ते बे संगति' न लीजई । संगतिनउ विहरउ न पडइं । धर्मी ते धर्मी जि । पापी ते पापीइ जि । काच नइ रत्न वारिसना सई एकठा रहई । साप अनइ सापनउ मणि घणउ काल एकठां रहइ । पुण जे जिसउं ते तिसि जि । संगतिनउ विहरउ न पडई | 20 इसिउ भाव ॥२८॥ ४ १ गुणवंत २ संगतिई ३ धम्मी ४ धम्मीइ. v
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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