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त्रण बालावबोध सहित
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असुभ ? जेसिं अणुसंगाओ जेहां मिथ्यात्वनां पर्वनां संग लगी धम्मीण वि धर्मवंतईहूई पाप करवानी बुद्धि हुइ ॥ २७ ॥
[मे. ] तेहनउं नामइ अशुभ पाडूउं, जीणइं मिथ्यात्वीनां पर्व होली बलेव नवरात्री प्रमुख उपदेश्यां । जिहां धूलि ऊडाडीइ, हिंसा कीजइ । जे पर्वना अनुषंग योगइतर धर्मवंतइ मनि पापमति 5 ऊपजइ ॥ २७ ॥
[ सो.] संसर्गि करी केतलानइ विहरंड पडइ, केतलानइ न पडइ । ए वात कहइ छइ ।
[जि. ] अर्थ पर्वसंसर्ग कही उत्कृष्ट धर्मवंतहूई अनइ गाढा पापीहूई सुसंसर्ग कुसंसर्ग कांई न करई । ए वार्ता प्रकट |
मज्झठिई पुण एसा अणुसंगेणं हवंति गुणदोसा । उक्किपुण्णपावा अणुसंगेणं न धिप्पंति ॥ २८ ॥
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[ सो.] मज्झ० मध्यम पुरुषनी स्थिति जं तेह रहई अणु. संगेणं संगतिनइ विशेषिरं गुणइ हुई, दोषइ हुई । गुणवंतनी संगति गुणवंत' थाइ । पापनी संगतिई दोषवंत थाई । ए मध्यम जीवनां विशेष | 15 उक्कि० उत्कृष्ट जे पुण्यना धणी गाढा उत्तम, अनइ उत्कृष्ट पापना धणी गाढा मिथ्यात्वी ते बे संगति' न लीजई । संगतिनउ विहरउ न पडइं । धर्मी ते धर्मी जि । पापी ते पापीइ जि । काच नइ रत्न वारिसना सई एकठा रहई । साप अनइ सापनउ मणि घणउ काल एकठां रहइ । पुण जे जिसउं ते तिसि जि । संगतिनउ विहरउ न पडई | 20 इसिउ भाव ॥२८॥
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१ गुणवंत २ संगतिई ३ धम्मी ४ धम्मीइ.
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