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त्रण बालावबोध सहित
भणी ते राय अगमता भणी कुपिउ अनर्थ करइ। तिम खरा सम्यक्त्वनु' कहिवूई लोकनउंई अगमतुं थाइं । तेह भणी कहिवूइ दुर्घट। इसिउ भाव ॥ १७॥
[जि.] मिथ्यात्वनी बहुलता प्रचुरता तिणि करी विशुद्ध सम्यक्त्वनउं कथनई कहिवउंइ दोहिलउं। जिम पापी नरेन्द्रनइ 3 उदइ वरनरवरचरियं प्रधान राजेन्द्र श्रीरामादिक तेहy न्यायरूप चरित्र कहिताई दोहिलउं हुइ ॥ १७ ॥
[में.] मिथ्यात्वनी बहुलता लगी भलाइ जीवनइं सूधा सम्यक्त्वनउं कहिवउंइ दोहिलउं। साचा सम्यक्त्वनी वातइ कही न सकीइं । केहनी परिइं। जिम न्याई राजानउं चरित्र पापी राजानइ. उदयि तेहनी ठकुराई कही न सकीइं। कांइ । ते अणगमती वातई कोप धरइ । तिम मिथ्यात्वी आगलि सूधा सम्यक्त्वनउं कहिवउं अरुचि ऊपजावइ ॥१७॥
. [सो.] केती वारइं को गुरुइ उत्सूत्रभाषी हुइ । तउ सिउं करिवं, ते कहइ छ।।
[जि.] अथ विद्यावंतई कूडाबोलउ मेल्हिवउ। इसु दृष्टांति करी स्थापइ छइ । बहुगुणविज्ञानिलओ उसुत्तभासी तहा विमुत्तब्यो। जह वरमणिजुत्तो वि हु विग्घकरो विसहरो लोए ॥१८॥
[सो.] बहु० घणा गुण अनइ विद्यानऊ निलय घर स्थानक गुरु छड् । गाढउ विद्यावंत गाढउ गुणवंतु छइ । पुण उत्सूत्रभाषी __१°ना स्वरूपनउं. २ कहिवउंइ दुर्लभ साचा सम्यक्त्व नौकाहिqइ. ३- लोकनइ. ४ गुणवंत,