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पष्टिशतक प्रकरण
तम्हा सव्वाणुना सव्वनिसेहो अ पवयणे नस्थि । आयं वयं तु लिज्जा लाहाकंखि ब्व वाणियओ ॥ (गा. ३९२)
[जि.] सघलउंइ विज्ञान जाणीइ । लोकमाहे तेह तथा च वली चउरिमा चतुरिमा पंडिताई लब्भइ लहीइ। पुण हे भाय ! 5 भ्रात बांधव संबोधने । एकइ जु जिनमत विधिरूपीउं रत्न तेहनउं
सुविज्ञान सम्यग् प्रकारि साचउं जाणिवउं दुहेलउं । भाग्य हुइ तउ जिनधर्म जाणीइ ॥१६॥
[मे.] 'सघलूइ जाणीइ परीछीइ' तिम लोकमाहि चउरिमाई बोलिवउंइ सोहिलउं । पणि हे भाई! एक जि दोहिलउं जे श्रीजिनमत 1०वीतरागना शासननी विधि आचाररूप रत्न तेहनउं साचउं जाणिवउं
॥१६॥ , .
[सो.] सूधा धर्मनउं जाणिवउं परहूं छउ । कहिणहारहूई सांप्रत कालि कहिवुइ दुहिलउं । ए वात कहि छइ।
[जि.] अथ साचउं सम्यक्त्व कहिवउं दृष्टांति करी दुःप्राप 15कहइ छ।। मिच्छत्तबहुलयाए विसुद्धसम्मत्तकहणमवि दुलहं। जह वरनरवइचरिअं पावनरिदस्स उदयम्मि ॥१७॥
[सो.] मिथ्यात्वनी बहुलता घणा जीव प्राहिइं भला भला तेहइ मिथ्यात्वी जि तीणई करी विसुद्ध० खरा सम्यक्त्वना स्वरूपनउ 2०कहिवउइ दुर्लभ । साचा सम्यक्त्वनी बात कही न सकइं। जह वर० जिम वारू, न्यायी धर्मवंत आगिला रायनुं चरित्र पावनरिंद० . पापी अन्यायी अधर्मी रायनइ उदइ वर्ततइ कही न सकीइं। बीहता
१ कहइ. २ °कहणमिव. ३ 'अन्यायी' नथी. ४ उदय.