________________
प्रण बालावबोध सहित
[मे.] एकइ थोडउइ ए वातनउ संदेह नथी जे जिनधर्म आराधतां मोक्षनां सुख छइ जि । पणि ए वात जाणी न सकीइं जे अति उत्कट पुण्यरहित जीव मोक्ष पामिस्यइं ॥१५॥
[सो.] जिनधर्मना दुर्लभपणाइज़िनी वात कहइ छइ। ....
[जि.] मोक्षसुख स्थापी जिनमतई जि जाणीतां दुहिलउं इसुं 5 प्रकटइ छइ ।
[मे.] जिनधर्मना दुर्लभपणानी' वात कहइ । सव्वं पि वियाणिजइ लब्भइ तह चउरिमाइ जणमझे। इक्कं पि भाय दुलहं जिणमयविहिरयणसुविआणं ॥१६॥
[सो.] सव्वं पि० बीजउं सहू जाणतां सोहिलउं । संसारनां० विज्ञान कला गीत नृत्यादिक । तथा वली लोकमाहि चतुरपणउं बोलवइ व्यवसाय वाणिज्यनइ विषइ डाहपण ते सहू सोहिलउँ । इक पि० हे भ्रात ! बांधव ! एकइ जि जगमाहि दुर्लभ जिणमय० श्रीजिनमत श्रीवीतरागना शासननी विधि आचार तेह रूपीआ रत्ननुं सम्यक् जाणिवउं । धर्मनी कुशलाई दुर्लभ । यत उक्तं- 15
धन्नाणं विहिजोगो विहिपक्खाराहगा सया धन्ना ।
विहिबहुमाणी धन्ना विहिपक्खअदूसगा धन्ना ॥ वली श्रीजिनवचन उत्सर्गापवादबहुल छइ। तेह भणी लाभ-छेहन जाणिवउं दोहिलङ । जिम श्रीधर्मनी वृद्धि हुइ तिमइ जि कीधउं जोईइ । यत उक्तं श्रीउपदेशमालायां
20 १ दुर्लभपणाइजिनी. २ कहइ छइ. ३ आ आखी गाथा. सो. नी बीजी प्रतमाथी पडी गई छे. जो के ते उपरनो बालावबोध एमां छे. ४ सोहिलं. ५ छेहानउं.