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________________ - षष्टिशतक प्रकरण श्रीसर्वज्ञनउं वचन न मानइ ऊथापइ । तहा विमुत्तव्यो० ते गुरुइ तिम मूकिवउ' छांडिवउ, जिम विषधर साप वरमणि० माथइ वारू विषापहार मणि करी सहित हुइ तेऊ विघ्न मरणकरणहार भणी दूरि मेल्हीइ तिम ते गुरुइ उत्सूत्रभाषी अनंत संसारनां मरण देन्हार भणी 5 दूरि त्यजवउ परहउ छांडिवउ ॥ १८ ॥ .. [जि.] बहु घणा गुण जिहां छइ इसी विद्या तेहनउ निलय गृह एहवउंइ उत्सूत्रभाषी हूंतउ तहा वि तथापिहिं मूकिवउ । जिम लोकमाहि प्रधान मणिसंजुत्तई हूंतउ हु निश्चइं विघ्नकर मृत्युकारक विषधर मेल्हीइ ॥१८॥ 10. [मे.] बहु घणा गुण विद्या तेहनउ निलय स्थानक गुरु छइ, पणि उत्सूत्र वचननउ भाषणहार बोलणहार तथापि मूंकिवउ । कहिनी परई । जिम वर प्रधान मणि सहितइ साप विघ्नकारक मरणदायक लोकमाहि हुइ तिम उत्सूत्रभाषी गुरु पणि मोक्षनइं विघ्नकारक हुइ ॥१८॥ [सो.] लोक प्राहई सगपण अनइ लक्ष्मीइजिनइं लोभिई 45लीजइ । धर्मनउं प्राहइं कांई न गणइ । ए वात कहइ छइ । [जि.] अथ मोहनु प्रभाव कहइ छइ । सयणाणं वा मोहे लोआ धिप्पंति अत्थलोहेण । नो धिप्पंति सुधम्मे रम्मे हा मोहमाहप्पं ॥१९॥ ... . [ सो.] सयणाणं० लोआ० ए. लोक सगानइ मोहिइं 10अथवा लक्ष्मीनइ लोभिई लीज़इ । तेन्हा देव गुरु मानइं तेह सिउ नात्रा संबंध करई। धर्म कांई न जोअइं। नो धिप्पंति० सुधर्म ख़रउ धर्म जे रूडउ ते न लिइं, तिहां न राचई। हा कहीइ अहो ! १ मूंकवउ. २ त्यजिवउ. ३ 'ए' नथी. ४ नात्रां.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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