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aण बालावबोध सहित
उस्सुत्तमायरंतो' उस्सुत्तं चैव पन्नवेमाणो । एसो अ अहाछंदो इच्छाछंदु त्ति एगट्टा ॥ १ ॥
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( उपदेशमाला, गा. २२१ )
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उम्मम्गदेसणार चरणं नासंति जिणवरिंदाणं । बावन्नदंसणा खलु न हु लब्भा तारिसा दुट्ठे ॥२॥ ( आवश्यक, गा. ११५२ ) इति वचनात् । ' पयमवि असतो सुत्तत्थं मिच्छदिट्टीओ' इति सिद्धान्तवचनाच्च । आणा मंगे० जु' आज्ञाभंग कीधर हूंतई महापाप । घणी क्रिया अनुष्टानकष्टादिक करतउड़ अनाराधिक जि हुइ । ता जिण० तेह भणी श्रीजिनशासननउ धर्म्म आराधतां गाढउ दुक्कर | गाढी क्रिया 10 करतां वीतरागनी आज्ञा पाखइ आराधिंवउ न हुइ काज न सरई । बीजा पाधरा ठाकुराइनी आज्ञा भागीरं महादोष कहीइं । ' आज्ञाभङ्गो नरेन्द्राणामशस्त्रवधमुच्यते ' इति वचनात् । तउ त्रिभुवनस्वामीं वी - रागनी आज्ञानहं भांजिवर दोषन सिउं कहीइ ? ॥ ११ ॥
[जि.] अमार्ग कुमार्ग तेहना कहिवातउ उत्सूत्र सिद्धान्त s विरुद्ध वचन तेहनउ लवमात्र उपदेसतउ श्रीजिनाज्ञानउ भंगालाप हुइ । आज्ञानइ भंगि हूंतइ पावं पाप हुई । ता तउ पच्छइ पापनइ उदइ हूंतइ जीवहूई जनमत जिनभाषित धर्म दु:कर दुःप्राप हुइ ॥ ११ ॥
[मे.] उन्मार्ग सेवतां उत्सूत्र सिद्धान्त विरुद्ध तेहनउ लेशमात्र उपदेश देतां जिनवर वीतरागनी आज्ञानउ भंग हुई । ते आज्ञाभंग 20 लगी महापाप हुइ । तेह पाप लगी जिनधर्म्म गाढउ दुक्कर हुइ ॥ ११ ॥
१- आ गाथा " आवश्यक 'मां जोवामां आवती नथी, पण 'उपदेशमाला 'मां छे. २ 'जु' नथी. ३ अनाराधक.