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________________ २७ तथा 'मे.' ए प्रमाणेना संक्षेपना निर्देशपूर्वक कर्यो छे. बालावबोधकारोए आपेलां अवतरणोनां मूळ स्थानो ज्यां. खोळी शकायां छे त्यां तेमनो निर्देश कौंसमां को छे. ___श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिरनी आ बधी हाथप्रतो उपयोग माटे मेळवी आपवा माटे पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीनो तथा ज्ञानमन्दिरना व्यवस्थापकोनो हुं उपकार मानुं छु. - परिशिष्टो-अगाउ कयु छे ते प्रमाणे, नेमिचन्द्र भंडारीनी बे कृतिओ आ ग्रन्थना परिशिष्ट तरीके लेवामां आवी छे—एक छे उत्तरकालीन अपभ्रंशमां रचायेलं 'जिनवल्लभसूरि गुरुगुणवर्णन' अने बीजी छे प्राकृत : पार्श्वनाथ स्तोत्र.' . (१) 'जिनवल्लभसूरि गुरुगुणवर्णन' जेसलमेरना बडा भंडारमांनी बे पानानी प्रतमाथी मळ्युं छे. ए बे पत्र उपर पत्रांक ८९-९० लख्या छे, तेथी अनुमान थाय छ के ते कोई सळंग मोटी हाथप्रतनो अंश छे. . ९० अंकवाळा पत्रना बीजा पृष्ठनो अर्धा करतां वधारे भाग कोरो छे, तेथी लागे छे के मूळ सळंग पोथी आ छेल्लु पत्र हशे. लिपि उपरथी प्रति पंदरमा सैकामां लखायेली जणाय छे. एनी पुष्पिकामां खरतरगच्छना जे आचार्योनां नाम आप्यां छे एमां छेल्लु नाम सागरचन्द्रसूरिनुं छे, तेथी ए आचार्यना जीवनकाळमां एनी नकल थई हशे एवो स्वाभाविक तर्क थाय छे. सागरचन्द्रसूरिनुं अवसान सं. १४६१मां थयु हतुं ( 'खरतरगच्छ पट्टावलीसंग्रह,' पृ. ३२), एटले एनाथी थोडां वर्ष पहेलां प्रति लखाई हशे. ... श्री. अगरचंद नाहटासंपादित 'ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह' (पृ. ३६९-७२ )मां आ काव्य छपायुं छे. जो के एमां उपयोगमा लेवायेली प्रति करतां जेसलमेरवाळी प्रति निःशंकपणे जूनी छे. श्री. नाहटानी वाचनानां पाठान्तरो टिप्पणमां नोंध्यां छे.
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
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