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तथा 'मे.' ए प्रमाणेना संक्षेपना निर्देशपूर्वक कर्यो छे. बालावबोधकारोए आपेलां अवतरणोनां मूळ स्थानो ज्यां. खोळी शकायां छे त्यां तेमनो निर्देश कौंसमां को छे. ___श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिरनी आ बधी हाथप्रतो उपयोग माटे मेळवी आपवा माटे पू. मुनिश्री पुण्यविजयजीनो तथा ज्ञानमन्दिरना व्यवस्थापकोनो हुं उपकार मानुं छु. - परिशिष्टो-अगाउ कयु छे ते प्रमाणे, नेमिचन्द्र भंडारीनी बे कृतिओ आ ग्रन्थना परिशिष्ट तरीके लेवामां आवी छे—एक छे उत्तरकालीन अपभ्रंशमां रचायेलं 'जिनवल्लभसूरि गुरुगुणवर्णन' अने बीजी छे प्राकृत : पार्श्वनाथ स्तोत्र.' . (१) 'जिनवल्लभसूरि गुरुगुणवर्णन' जेसलमेरना बडा भंडारमांनी बे पानानी प्रतमाथी मळ्युं छे. ए बे पत्र उपर पत्रांक ८९-९० लख्या छे, तेथी अनुमान थाय छ के ते कोई सळंग मोटी हाथप्रतनो अंश छे. . ९० अंकवाळा पत्रना बीजा पृष्ठनो अर्धा करतां वधारे भाग कोरो छे, तेथी लागे छे के मूळ सळंग पोथी आ छेल्लु पत्र हशे. लिपि उपरथी प्रति पंदरमा सैकामां लखायेली जणाय छे. एनी पुष्पिकामां खरतरगच्छना जे आचार्योनां नाम आप्यां छे एमां छेल्लु नाम सागरचन्द्रसूरिनुं छे, तेथी ए आचार्यना जीवनकाळमां एनी नकल थई हशे एवो स्वाभाविक तर्क थाय छे. सागरचन्द्रसूरिनुं अवसान सं. १४६१मां थयु हतुं ( 'खरतरगच्छ पट्टावलीसंग्रह,' पृ. ३२), एटले एनाथी थोडां वर्ष पहेलां प्रति लखाई हशे. ... श्री. अगरचंद नाहटासंपादित 'ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह' (पृ. ३६९-७२ )मां आ काव्य छपायुं छे. जो के एमां उपयोगमा लेवायेली प्रति करतां जेसलमेरवाळी प्रति निःशंकपणे जूनी छे. श्री. नाहटानी वाचनानां पाठान्तरो टिप्पणमां नोंध्यां छे.