SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेखनवर्ष नथी, पण लिपि उपरथी प्रति सोळमा शतकमां लखायेली जणाय छे. (४) मेरुसुन्दर उपाध्यायना बालावबोधनी प्रतनो अनुक्रमांक ३८८२ छे. एर्नु कद १०x४॥" अने पत्र १६ छे. प्रत्येक पृष्ठ उपर १५ पंक्तिओ लखेली छे. प्रति शुद्ध छे. लेखनवर्ष नथी, परन्तु लिपि उपरथी ते पण सोळमा सैकामां लखायेली जणाय छे. आम सोमसुन्दरसूरिकृत बालावबोधनी ज बे प्रतो होवाथी ए ज बालावबोधनां पाठान्तरो नोंधी शकायां छे. एमां सं. १५१३ वाळी प्रतने मुख्य प्रत तरीके स्वीकारी छे अने बीजी प्रतना पाठभेदो टिप्पणमां टांक्या छे. पण 'धरीइ-धरीइं,' 'अनइ-अनइं,' 'तीणइ-तीणइं,' 'विषइविषई,' ए प्रकारना पाठभेदो के जे जूनी गुजरातीमां बहु विपुल छे ते नोंध्या नथी. .. षष्टिशतक 'नी मूल प्राकृत गाथानी बालावबोधकारोए करेली प्रस्तावना, पछी मूळ गाथा तथा ते पछी अनुक्रमे त्रण बालावबोधो ए प्रमाणेनो क्रम मुद्रणमा राखेलो छे. एमां [सो.], [जि.] अने [मे.] ए संक्षेपो वडे अनुक्रमे सोमसुन्दर, जिनसागर अने मेरुसुन्दर ए त्रण बालावबोधकारो समजवाना छे. ___ षष्टिशतक 'नी मूल गाथाओनो पाठ पण सं. १५१३ वाळी प्रत प्रमाणे स्वीकारीने बीजी प्रतमां क्वचित् मळता अन्य पाठो नोंध्या छे. एमां पण 'एअं-एयं,' 'सअल-सयल,' जेवा पाठो जेमां उवृत्त स्वरनो लघुप्रयत्न 'य'कार थई जाय छे ए नोंध्या नथी. सोमसुन्दरसूरिना बालावबोधनी आ बीजी प्रतनो निर्देश कां तो वीगतथी अथवा 'सो.' एम संक्षेपथी टिप्पणमां कयों छे. मूळ गाथाओनां पाठान्तरो जिनसागरसूरि अने मेरुसुन्दरमां कवचित् मळे छे त्यां एमनो उल्लेख 'जि.'
SR No.022082
Book TitleShashti Shatak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Bhandari, Bhogilal J Sandesara
PublisherMaharaja Sayajirav Vishvavidyalay
Publication Year1953
Total Pages238
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy