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ते बालावबोधकारने संमत एवो पाठ आपेलो छ.. आ चारे हस्तलिखित प्रतो पाटणना प्रसिद्ध श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिरमा राखवामां आवेला संघना भंडारनी छे, बधी ज प्रतो जैन धाटीनी देवनागरी लिपिमां लखायेल छे.. ... (१) सोमसुन्दरसूरिना बालावबोधनी बे प्रतो पैकी 'पहेली प्रतनी अनुक्रमांक १३४९ छे. एर्नु कद १०॥४४॥” छे अने पत्र २५ छे. प्रत्येक पृष्ठ उपरं नियमित रीते १५ पंक्तिओ लखायेली छे. आ प्रतिनी नकल सं. १५१३मां थयेली छे.
(२) सोमसुन्दरसूरिना बालावबोधनी बीजी प्रतनो अनुक्रमांक १३५० छे. एर्नु कद १०॥४४॥ छे अने पत्र ४२ छे. जो के एनुं १२मुं पत्र मळतुं नथी. प्रत्येक पृष्ठ उपर ११ पंक्ति लखेली छे. आ प्रतिमां नकल कर्यानुं वर्ष नथी, पण लिपि उपरथी ते सोळमा सैकानी लागे छे. आ प्रत पहेलीनी तुलनाए अशुद्ध छे. मूळ प्रतीक वांचीने लखवामां पण लहियानी घणी भूलो थयेली छे. जेम के-चतुर्थी अने षष्ठी विभक्तिनो अर्थ व्यक्त करता हूइ 'ने स्थाने तेणे सर्वत्र 'हुई' लख्युं छे. केटलीक वार तो आखी पंक्तिओ लहियाना प्रमादने लीधे पडी गयेली छे, जेनो यथास्थान निर्देश कयों छे.
(३) जिनसागरसूरिना बालावबोधनी प्रतनो अनुक्रमांक १०१५ छे. एर्नु कद १२० x ४॥” छे अने पत्र १४ छे. मात्र 'पहेला पृष्ठ उपर २० पंक्ति लखेली छे, बाकीनां बधां पृष्ठ उपर १९ पंक्तिओ छे. 'षष्टिशतक 'नो बालावबोध आ पोथीमां १२मा पत्रना पहेला पृष्ठ उपर पहेली पंक्तिमां पूरो थाय छे; ए पछी पोथीना अंतभाग सुधी ‘गौतमपृच्छा 'नो बालावबोध लखायेलो छे, जेमां कर्तानुं नाम नथी. आ प्रतिमां लिपिनो मरोड घणो सुन्दर छे.