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एक गाहाउ क० गाथा १६१ प्रमाण । जि के विहिमग्गरया क० वीतराग देवरउ भाष्यउ मार्ग तीयइ मार्गिइ चालिवा सावधानइ हवा भव्वा क० भव्यजीव ते पढंतु क० भणंतु । जाणंतु क० अर्थ जाणउ जिम सम्यक् प्रकारइ भणतां थकां गुणतां थकां वली मनमाहि अर्थ भावतां थकां अहो जीवो तुम्हे जंतु सिवं शाश्वता अनंतो मोष्यरा सुख पामउ i॥ १६१ ॥
इति श्रीनेमिचन्द्रभंडारिकविरचितषष्टिशतकप्रकरणस्य बालावबोध समाप्त ॥ शुभं भवतु ॥
आ उपरांत जेसलमेर अने बीकानेरना प्राचीन ग्रन्थभंडारोमां 'षष्टिशतक' उपरना केटलाक स्तबक (टबा) पण जोवामां आवे छे. क्षमारत्नना शिष्य धर्मदेवे सं. १५१५ मां रचेला बालावबोधनी तथा जयसोमकृत स्तबकनी नोंध मळे छे, पण ए कृतिओनी हाथप्रतो मारा जोवामां आवी नथी. प्रायः विक्रमना १९ मा शतकमां थयेला मोहनकृत 'षष्टिशतक 'नो दूहामय अनुवाद जैन सत्यविजय ग्रन्थमाळाना 'षष्टिशतक 'ना संस्करण साथे बहार पडेलो छे.
हाथप्रतो अने संपादन आ ग्रन्थना संपादनमां कुल चार हस्तलिखित प्रतोनो उपयोग करवामां आव्यो छे. एमां सोमसुन्दरसूरिना बालावबोधनी प्रतो बे छे, ज्यारे जिनसागरसूरि तथा मेरुसुन्दरना बालावबोधनी एक-एक प्रत छे. प्रत्येक प्रतमां बालावबोध उपरांत मूल प्राकृत 'षष्टिशतक 'नो पण ते ___ * 'जिनरत्नकोश,' पृ. ४०४. 'मंत्रीकर्मचन्द्रवंशावलीप्रबन्ध 'ना कर्ता खरतरगच्छीय जयसोम विक्रमना १७मा शतकमां थई गया तथा छ कर्मग्रन्थो उपर बालावबोध (सं. १७१६) रचनार तपागच्छीय जशसोम-शिष्य जयसोम १८मा शतकमां थई गया. परन्तु ए बेमांथी कया जयसोमे आ स्तबक रच्यो छे ते 'जिनरत्नकोश'मा जे ट्रंकी नोंध छे ते उपरथी कही शकाय नहि.